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जन्माष्टमी व्रत कथा - Janmastami vrata kathai in sanskrita hindi PDF

जन्माष्टमी व्रत कथा - Janmastami vrata kathai in sanskrita hindi PDF

(0 Reviews) September 15, 2023
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September 15, 2023
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ब्रह्मपुत्र ! मुनिश्रेष्ठ! सर्वशास्त्रविशारद ! बूहि व्रतोत्तमं देव येन मुक्तिर्भवेन्नृणाम् । तद्वतं वद भो ब्रह्मन् भुक्तिमुक्तिप्रदायकम् ॥1॥

श्रीकृष्णजन्माष्टमी व्रत कथा

भाषा टीका सहित

जन्माष्टमी व्रत कथा - Janmastami vrata kathai in sanskrita hindi PDF

 इन्द्र उवाच

ब्रह्मपुत्र ! मुनिश्रेष्ठ! सर्वशास्त्रविशारद !

बूहि व्रतोत्तमं देव येन मुक्तिर्भवेन्नृणाम् ।

तद्वतं वद भो ब्रह्मन् भुक्तिमुक्तिप्रदायकम् ॥1॥


नारद उवाच -


त्रेतायुगस्य चान्ते हि द्वापरस्य समागमे ।

दैत्यः कंसाख्य उत्पन्नः पापिष्ठो दुष्टकर्मकृत् ॥ 2 ॥


स्वसा तस्य महाश्रेष्ठा देवकी नाम शोधना ।

तस्याः पुत्रोऽष्टमो यो हि हनिष्यति च दानवम् ॥ 3 ॥


इन्द्र उवाच -


ब्रूहि नारद यत्नेन वार्ता दैत्यस्य तस्य हि ।

किमत्र देवकी पुत्रः स हनिष्यति


इन्द्र ने कहा, हे मुनिश्रेष्ठ हे सर्वास्वाद देवों में उत्तम उस पत्र को कहिए जिससे प्राणियों को मुक्ति साथ हो और उससे प्राणियों को भोग और मोक्ष भी प्राप्त हो ||1|| नारद ने कहा के अन्त द्वापरयुग के रम्म काल में नीच कर्म को करने वाला पापी नाम का हुआ उसकी महासुन्दरी पनि देवकी नाम की भी उस देवकी में उत्पन्न आठ पुत्र टायफंस को पागा ॥ 3 ॥ इन्द्र ने कहा-हेमाद की मन कदा कहिए क्या पुत्र (आठवाँ अपने मामा (कम) का मन करेगा अर्थात् मांगा है। नाद ने कहा- किसी

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