भारतीय संस्कृतिके मूलाधारके रूपमे वेदोके बाद पुराणोंका ही स्थान हे । वेदोमें वर्णित अगम रहस्योंतक
जन-सामान्यकी पहुंच नहीं हो पाती, परन्तु पुराणोंकी मंगलमयी, ज्ञानप्रदायिनी दिव्य कथाओंका श्रवण-मनन
ओर पठन-पाठन करके जन-साधारण भी भक्तितत्वके अनुपम रहस्यसे सहज ही परिचित हो सकते हैँ ।
महाभारतम कहा गया है--' पुराणसंहिताः पुण्याः कथा धर्मार्थसंश्रिताः।' ( महाभारत, आदि० ९। ९६ ) "अर्थात्
पुराणोंककी पवित्र कथाएँ धर्म ओर अर्थको प्रदान करनेवाली दें ।' अध्यात्मकी दिशामे अग्रसर होनेवाले
साधकोंको पौराणिक कथाओंके अनुशीलनसे तत्त्वज्ञानकी प्राप्ति होती है। इसलिये भगवान्के दर्शनके लिये
अथवा शारीरिक ओर मानसिक रोगकी निवृत्तिके लिये पुराणोंका पारायण करना चाहिये ।