श्री गणेशाय नमः
प्रथमं वेदीं रचयित्वा
पहिले पाधा मिट्टी की दो वेदी बनावे । एक हवन की और एक नवग्रह की । नवग्रह की उत्तर में और हवन की दक्षिण में । फिर उन दोनों वेदियों के चारों कोणों में चार केले के खम्ब और चार सरे खड़े करे और उनके चारों ओर आम के पत्तों की बन्दनवार बाँधे, फिर उन दोनों वेदियों के ऊपर लाल कपड़ा (चन्दोया) ताने तथा उन वेदियों पर चून से चौक पूरे । फिर नीचे लिखे श्लोकों के प्रमाण से नवग्रह की जो वेदी उस पर रंग आकार सहित नवग्रह स्थापित करे-
अथ नवग्रह- स्थापन विधिः मध्ये तु भास्करं विद्याच्छशिनं पूर्वदक्षिणे । लोहितं दक्षिणे विद्याद् बुधं पूर्वे तथोत्तरे । १ ।
वेदी के बीच में सूर्य नारायण की स्थापना करे । पूर्व औरदक्षिण के कोण में चन्द्रमा । दक्षिण में मंगल । पूर्व और उत्तर के कोण में बुध उत्तरेण गुरुं विद्यात् पूर्वेणैव तु भार्गवम् । पश्चिमेच शनिं विद्याद्राहूं दक्षिण पश्चिमे । उत्तर में बृहस्पति, पूर्व में शुक्र, पश्चिम में शनिश्चर, दक्षिण और पश्चिम कोण में राहू पश्चिमोत्तरतः केतुं ग्रहस्थापनमुत्तमम् पश्चिम और उत्तर के कोण में केतु, इस प्रकार ग्रह स्थापन करे ।
भास्करं वर्तुलाकारम् अर्द्धचन्द्र निशाकरम् । ३ । सूर्य का गोल आकार बनावे | चन्द्रमा का आधा गोल बनावे । ३ ।
त्रिकोणं मंगलंचैव बुधं च धनुराकृतिम् ।
पद्माकारं गुरुंचैव चतुष्कोणंचभार्गवम् ।४ ।
मंगल का तीन खूंट का आकार बनावे । बुध का धनुष जैसा, बृहस्पति का पद्म जैसा, शुक्र का चार खूंट का आकार बनावे । ४ ।