नमस्कार, नित्य दान, संकल्प-विधि, अतिथि सत्कार, भोजन- विधि, शयन-विधान आदि प्रकरणोंके साथ-साथ नित्य पाठ करनेके स्तोत्रोंका संग्रह भी किया गया है तथा विभिन्न देवोंकी दैनिक उपयोगमें आनेवाली स्तुति और आरतीका संकलन हुआ है। विशिष्ट पूजा-प्रकरणके अन्तर्गत स्वस्तिवाचन, गणेश-पूजन, वरुणकलश पूजन, पुण्याहवाचन, नवग्रह पूजन, षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका, चतुष्षष्टियोगिनी तथा वास्तुपूजनका भी संग्रह हुआ है। इसके साथ ही पञ्चदेव, शिव, पार्थिवेश्वर, शालग्राम तथा महालक्ष्मी दीपमालिका आदिके पूजन विधान भी प्रस्तुत किये गये हैं।
प्रत्येक मनुष्यके चौबीस घंटेमें २१,६०० श्वास चलते हैं। अतः प्रतिश्वासके अनुसार भगवन्नाम स्मरण होना ही चाहिये। शास्त्रों में अजपाजपकी एक सरल प्रक्रिया है, उसे भी यहाँ दिया गया है। पुस्तकके अन्तमें विभिन्न देवोंकी पूजामें विहित एवं निषिद्ध पत्र-पुष्पों का विवेचन भी हुआ है, जो अर्चकोंके लिये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
इस पुस्तकका लेखन कार्य परमाचार्य श्रीयुत पं० श्रीरामभवनजी मिश्रने प्रारम्भ किया, बीचमें ही उनका काशी-लाभ हो जानेके कारण शेष भागका लेखन उनके सुपुत्र श्रीलालबिहारीजी मिश्रने सम्पन्न किया।
आशा है, यह 'नित्यकर्म-पूजाप्रकाश' साधकोंके लिये अत्यधिक उपयोगी और लाभप्रद होगा।
गीता जयन्ती- मार्गशीर्ष शुक्ल ११ वि० सं० २०५०
- राधेश्याम खेमका