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संस्कार प्रकाश - Sanskar Prakasha gitapress PDF

संस्कार प्रकाश - Sanskar Prakasha gitapress PDF Upayogi Books

by Gita press
(0 Reviews) September 16, 2023
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Guru parampara

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September 16, 2023
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Gita press
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Hindi Sanskrit
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मनुष्यकी नैतिक, मानसिक, आध्यात्मिक उन्नतिके लिये, इसके साथ ही बल-वीर्य, प्रज्ञा और दैवीय गुणोंके प्रस्फुटनके लिये शास्त्रोंद्वारा निर्दिष्ट संस्कारोंसे व्यक्तिको संस्कारित करनेकी आवश्यकता है।

षोडश संस्कारोंकी आवश्यकता


"जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।' जो जनमता है, उसे मरना भी पड़ता है और मरनेवालेका पुनर्जन्म होना भी प्रायः निश्चित है। अपने शास्त्र कहते हैं कि चौरासी लाख योनियोंमें भटकता हुआ प्राणी भगवत्कृपासे तथा अपने पुण्यपुंजोंसे मनुष्ययोनि प्राप्त करता है। मनुष्यशरीर प्राप्त करनेपर उसके द्वारा जीवनपर्यन्त किये गये अच्छे-बुरे कर्मोंके अनुसार उसे पुण्य पाप अर्थात् सुख-दुःख आगे के जन्मोंमें भोगने पड़ते हैं— 'अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् । शुभ-अशुभ कर्मोंके अनुसार ही विभिन्न योनियोंमें जन्म होता है, पापकर्म करनेवालोंका पशु-पक्षी, कीट पतंग और तिर्यक् योनि तथा प्रेत-पिशाचादि योनियोंमें जन्म होता है, पुण्य कर्म करनेवालेका मनुष्ययोनि, देवयोनि आदि उच्च योनियोंमें जन्म होता है । मानवयोनिके अतिरिक्त संसारकी जितनी भी योनियाँ हैं, वे सब भोगयोनियाँ हैं, जिनमें अपने शुभ एवं अशुभ कर्मोके अनुसार पुण्य- पाप अर्थात् सुख-दुःख भोगना पड़ता है। केवल मनुष्ययोनि ही ऐसी है, जिसमें जीवको अपने विवेक बुद्धिके अनुसार शुभ-अशुभ कर्म करनेका सामर्थ्य प्राप्त होता है।

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अतः मनुष्य जन्म लेकर प्राणीको अत्यन्त सावधान रहनेकी आवश्यकता है कारण, इस भवाटवीमें अनेक जन्मोंतक भटकनेके बाद अन्तमें यह मानव-जीवन प्राप्त होता है, जहाँ प्राणी चाहे तो सदा-सर्वदाके लिये अपना कल्याण कर सकता है अथवा भगवत्प्राप्ति कर सकता है अर्थात् जन्म-मरणके बन्धनसे भी मुक्त हो सकता है, परंतु इसके लिये अपने सनातन शास्त्रोंद्वारा निर्दिष्ट जीवन प्रक्रिया चलानी पड़ती है।

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