अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान श्री हरि की पूजा की जाती है । यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है । इस व्रत में सूत या रेशम के धागे को लाल कुंकुम से रंग, उसमें चौदह गांठे ( 14 गांठे भगवान श्री हरि के द्वारा 14 लोकों की प्रतीक मानी गई है ) लगाकर राखी के तरह का अनंत बनाया जाता है । इस अनंत रूपी धागे को पूजा में भगवान पर चढ़ा कर व्रती अपने बाजु में बाँध हैं ।
पुरुष दाएं तथा स्त्रियां बाएं हाथ में अनंत बाँधती है। ऐसी मान्यता है कि यह अनंत हम पर आने वाले सब संकटों से रक्षा करता है। यह अनंत डोरा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फल देने वाला माना गया है। यह व्रत धन पुत्रादि की कामना से किया जाता है। इस दिन नए डोरे के अनंत को धारण करके पुराने का विसर्जन किया जाता है । अग्नि पुराण के अनुसार व्रत करनेवाले को एक सेर आटे की मालपुआ अथवा पूड़ी बनाकर पूजा करनी चाहिये तथा उसमें से आधी ब्राह्मण को दान दे दें और शेष को प्रसाद के रूप में बंधु-बाँधवों के साथ ग्रहण करें । इस व्रत में नमक का उपयोग निषेध बताया गया है ।
ऐसी मान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति को अनंत रास्ते में पड़ा मिल जाये तो उसे भगवान की इच्छा समझ कर, अनंत व्रत तथा पूजन करना चाहिये
यह व्रत पुरुषों और स्त्रियों के समस्त पापों को नष्ट करने वाला माना गया है । इस व्रत के प्रभाव से ही पाण्डवों ने अपने भाईयों सहित महाभारत का युद्ध जीत अपना खोया हुआ पाया साम्राज्य तथा मान सम्मान पाया ।
अनंत चतुर्दशी व्रत पूजन सामग्री :- Anant Chaturdashi Vrat Pujan Samagri:-
इस पूजा में यमुना (नदी), शेष (नाग) तथा अनंत ( श्री हरि ) की पूजा की जाती है । इस में कलश को यमुना के प्रतीक के रूप में, दूर्बा को शेष का प्रतीक तथा 14 गांठों वाले अनंत धागे को भगवान श्री हरि के प्रतीक के रूप में पूजा की जाती है । इस में फूल, पत्ती, नैवैद्य सभी सामग्री को 14 के गुणक के रूप में उपयोग किया जाता है । ऐसा कहा जाता है कि यदि यह व्रत 14 वर्षों तक किया जाए, तो व्रती विष्णु लोक की प्राप्ति करता है।