QR Code
मनुस्मृति हिन्दी टीका सहित - Manusmriti Mool Hindi Tika PDF

मनुस्मृति हिन्दी टीका सहित - Manusmriti Mool Hindi Tika PDF Upayogi Books

by Manish Tyagi
(0 Reviews) October 29, 2024
Guru parampara

Latest Version

Update
October 29, 2024
Writer/Publiser
Manish Tyagi
Categories
18 Puranas
Language
Hindi Sanskrit
File Size
4.6 MB
Downloads
4,051
License
Free
Download Now (4.6 MB)

More About मनुस्मृति हिन्दी टीका सहित - Manusmriti Mool Hindi Tika PDF Free PDF Download

मनुस्मृति

॥ श्री हरि ॥

मनुस्मृति हिन्दी टीका सहित - Manusmriti Mool Hindi Tika PDF

प्रस्तावना

वर्तमान समाज में एक शब्द जो राजनीतिक, सामाजिक रूप से बहुधा सुनने में आता है वह है 'मनुवाद', परन्तु न तो इसका अर्थ बताया जाता है न ही यह की मनुवाद की परिभाषा के क्या मायने हैं। अंग्रेज आलोचकों से लेकर वर्त्तमान समाज में दिखाई देने वाले तथाकथित मनुविरोधी राजनीतिज्ञों और भारतीय लेखकों ने मनुस्मृति का जो चित्र प्रस्तुत किया है वह बेहद भयावह, विकृत एकांगी और पूर्व आग्रह से युक्त है। परन्तु वह वास्तविकता से कोसों दूर है। संसार मे व्याप्त किसी किसी भी धर्म पुस्तक के आप दो पक्ष देख सकते हैं - उत्तम तथा अधम । इन सभी महानुभावों ने मनुस्मृति के उत्तम पक्ष की सर्वथा अवहेलना करते हुए केवल अधम पक्ष की और ही अपना ध्यान केन्द्रित किया है और यह दिखाने का प्रयास किया है की सनातन हिंदू समाज कितना निष्कृष्ट और कितना विकृत है। इसी से देश-विदेश में सनातन धर्म के प्रति भ्रान्ति उत्पन्न होती हैं। और हमारे धर्म का ह्रास होता है।


मनुस्मृति को गाली सब देतें है परन्तु यह कोई नहीं बताता की स्मृति में व्यक्तिगत चित्तशुद्धि से लेकर पूरी समाज व्यवस्था तक कई ऐसी उत्तम बातें हैं जो आज भी हमारा मार्गदर्शन कर सकती हैं। जन्म के आधार पर जाति और वर्ण की व्यवस्था पर सबसे पहली


चोट मनुस्मृति में ही की गई है। सबके लिए शिक्षा और सबसे शिक्षा ग्रहण करने की बात भी इसमें सम्मलित है। स्त्रियों की पूजा करने अर्थात् उन्हें अधिकाधिक सम्मान देने, उन्हें कभी शोक न देने, उन्हें हमेशा प्रसन्न रखने और संपत्ति का विशेष अधिकार देने जैसी बातें भी हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात जो छिपाई जाती है वह यह है की मनुस्मृति में वर्णित वर्ण व्यवस्था गुण-कर्म- योग्यता पर आधारित वर्ण व्यवस्था है, जन्म पर आधिरित संकीर्ण जातिव्यस्था नहीं है । मनुस्मृति में केवल कर्म पर आधरित वर्ण व्यवस्था का उल्लेख किया गया है, किसी जाति अथवा गोत्रों का विवरण नहीं है। मनुस्मृति अध्याय १० के श्लोक ६५ में कहा गया है:


शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम् । इताम्। S क्षत्रियाज् जातमेवं तु विद्याद् वैश्यात् तथैव च ॥ ॥६५॥


अर्थात शूद्र ब्राह्मण बन सकता है और ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त हो


ब्राह्मण बन सकत


सकता है। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्यों में भी वर्ण परिवर्तन हो


सकता है।


प्रसिद्ध इतिहासकार एन्टॉनी रीड कहते हैं कि वर्मा, थाइलेण्ड, कम्बोडिया, जावा- बाली आदि में धर्मशास्त्रों और प्रमुखतः मनुस्मृति, का बड़ा आदर था। इन देशों में इन ग्रन्थों को प्राकृतिक नियम देने वाला ग्रन्थ माना जाता था और राजाओं से अपेक्षा की जाती थी कि वे इनके अनुसार आचरण करेंगे। इन ग्रन्थों का प्रतिलिपिकरण किया गया, अनुवाद किया गया और स्थानीय कानूनों में इनको सम्मिलित


कर लिया गया।


'बाइबल इन इण्डिया' नामक ग्रन्थ में लुई जैकोलिऑट (Louis Jacolliot) लिखते हैं:


मनुस्मृति ही वह आधारशिला है जिसके ऊपर मिस्र परसियार प्रसियन और रोमन कानूनी सहिताओं का निर्माण हुआ। आज भी यूरोप में मनु के प्रभाव का अनुभव किया जा सकता है। M


(Manu Smriti was the foundation upon which the Egyptian, the Persian, the Grecian and the Roman codes of law were built and that the influence of Manu is still felt in Europe.)


दूसरा पक्ष यह भी है ईसाईयों के लिए बाइबल और मुसलमानों के लिए कुरान और हदीस की तरह मनुस्मृति का अक्षरक्ष: पालन करना किसी भी हिन्दू के लिए प्रथम आवश्यकता नहीं हैं और वर्तमान समाज में मनुस्मृति में वर्णित सिद्धांतों का कितना पालन हो रहा है। यह कहने का विषय नहीं है क्योंकि एक शब्द का पालन भी नहीं हो रहा है। आश्चर्य इस बात का है की मनुस्मृति का विरोध वह लोग करते हैं जिन्होंने मनुस्मृति पढना तो दूर उसकी छवि तक नहीं देखी है और वही व्यक्ति मनुस्मृति को जला कर उसको जूते मार कर यह साबित करने का प्रयास करता है की देखिए हम कितने सभ्य हैं। इसी पर कबीरदास जी ने कहा है:


साधु ऐसा चाहिए जैसा खूप सुभाष सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय


इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेता है और निरर्थक को उड़ा देता है। मनुस्मृति का विरोध करने वालों को किसने रोका है की अधम विचारों को फेंक दीजिए और उत्तम विचारों को अपना लीजिए, उन्हें जीवन में भी उतारिए और एक सुन्दर समाज का निर्माण कीजिए।


हमारा सदैव यही प्रयास रहा ही की समाज में व्याप्त भ्रांतियों को दूर कर, सनातन धर्म के उत्तम पक्ष का विकास कर, धर्म और देश का विकास किया जाए। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता की संकीर्ण जाति व्यवस्था से हमारे समाज का ह्रास हुआ है, परन्तु केवल एक त्रुटी के कारण सम्पूर्ण धर्म को कलंकित करना दुर्भाग्यपूर्ण हैं।


हज़ारों वर्षों के चिंतन में जहां कुछ अनुपम विचार और व्यवहार है, वहां कुछ विसंगतियां होनी असंभव नहीं है। यह भी संभव है की स्थान, काल, परिस्थिति और व्यक्तिगत वृत्तियों के आधार पर पुस्तक में प्रक्षेप भी हुआ हो परन्तु उस समय में सिद्ध किए गए सिद्धांतों का कलियुग में विरोध कुछ ऐसा ही है की हम सभी डायनासोरों को मानवखोर राक्षसों की संज्ञा दे कर उन्हें धिक्कारें क्योंकि विश्व के सबसे पुराने धर्म ग्रन्थ ऋग्वेद में भी मनु को मानव जाति का पिता कहा गया है। आवश्यकता है कि हम उदारतापूर्वक चिंतन करें और सभ्य समाज के निर्माण के लिए जो उत्तम है उसे ग्रहण करें और अधम को पूरी सतर्कता और विनम्रता से त्याग दें।


सनातन धर्म की यही विशेषता रही है की समय के साथ धर्म और समाज की परिभाषा बदल जाती है। इसी विशेषता के कारण हम अनेकों विप्लवों के बाद भी स्थिर खड़े हैं और सम्पूर्ण विश्व में सनातन विचारधारा को न केवल स्वीकार किया जा रहा है परन्तु धर्म के अनेकों अंगों को मान्यता भी प्राप्त हो रही हैं।


संक्षेप में इस पुस्तक के संकलन का भी यही उद्देश्य है की बुद्धिमान मनुष्य इस ग्रन्थ को पढ़ कर, विचार कर, सत्य शोधन कर उत्तम को ग्रहण करें तथा अधम को सम्पूर्ण रूप से त्याग दें ।


श्री मनीष त्यागी

संस्थापक एवं अध्यक्ष

श्री हिंदू धर्म वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन

Rate the PDF

Add Comment & Review

User Reviews

Based on
5 Star
0
4 Star
0
3 Star
0
2 Star
0
1 Star
0
Add Comment & Review
We'll never share your email with anyone else.
More »

Other PDFs in This Category