QR Code
कुलार्णव तन्त्रम् - Kularnava Tantram PDF

कुलार्णव तन्त्रम् - Kularnava Tantram PDF Upayogi Books

by Chaukhamba Surbharati Prakashan
(0 Reviews) November 08, 2023
Guru parampara

Latest Version

Update
November 08, 2023
Writer/Publiser
Chaukhamba Surbharati Prakashan
Categories
Karmakanda Tantra
Language
Hindi Sanskrit
File Size
72.2 MB
Downloads
1,085
License
Free
Download Now (72.2 MB)

More About कुलार्णव तन्त्रम् - Kularnava Tantram PDF Free PDF Download

कुलार्णव तन्त्रम् free PDF file from Chaukhanbha prakashana

कुलार्णव तन्त्रम् - Kularnava Tantram PDF

भारतवर्ष की सभी प्रमुख नदियाँ और ब्रह्मपुत्र सदूश नद कैलाशशिखर पर 

विराजमान मानसरोवर से निकलकर भारतीय भूमि को अभिसिश्चित करते हैं। इससे भी 

महत्त्वपूर्ण सुधास्नोत के उद्गम से प्रायः अधिकतम लोग अपरिचित हैं । 

कैलाश के शिखर पर आसीन परमेश्वर शिव के मानस सरोवर से समुच्छलित परा, 

पश्यन्ती और मध्यमा की मार्मिकताओं से ओत-प्रोत सारस्वतसुधा की तरब्लिणी जब 

वैखरी वाग्धारा में बह चली थी और उसने समग्र भारतीय अस्तित्व को अभिषिज्चित कर 

दिया था, वह एक अलौकिक क्रियाशक्ति की सक्रियता का शुभारम्भ था। मानस सरोवर 

से कुलदर्शन समुद्र ही समुद्धृत हुआ था | कैलाशशिखर से यह कुल का अर्गव आज भी 

विश्वात्मा के महाभिषेक में चरितार्थ हो रहा है और अनन्तकाल तक होता रहेगा । 


सचमुच यह तन्त्र शिखर पर तरब्वित होने वाला रत्नाकर है | इसकी गहराइयों में 

आकाश, पाताल और मर्त्यलोक सभी समहित हैं | वर्णों, मन्त्रों और पदों के मणिद्वीपों 

में शैवसद्भाव सामरस्य के साम शाश्वत सुने जाते हैं। कला, तत्त्व और भुवनों की 

भव्यता से यह ओत-प्रोत है । 


मूलाधार से ब्रह्मरन्श्न पर्यन्त इसमें धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य का उच्छलन है | 

एक ओर इसमें चेतना के ज्वालामुखी फूटते हैं, तो दूसरी ओर माया, कला, विद्या, 

राग, काल और नियति द्वारा नियोजित संकोच की ससीमता में चेतना को जमाकर बर्फ 

बना देने वाली अणुता और पशुता से धारणाओं द्वारा उत्तरोत्तर उबर जाने के अध्यवसायों 

के उपदेश भी इसमें तरब्लित अनुभूत होते हैं। 


ऐसे तन्त्र का मुख्य कथ्य कुल है । अत: इसे कुलार्णवतन्त्र की संज्ञा से विभूषित 

कर देवीपुत्र कारत्तिकेय ने भारतीयता का सम्मान किया था । ऊर्ध्वशिखर भैरवीय शरीर 

को ऊर्ध्वभूमि है। ईशान इस ऊर्ध्वता के अधिष्ठाता हैं। ईशान से जिस आम्नाय का 

प्रवर्तन हुआ, उसे ऊर्ध्वाम्नाय कहते हैं। यह सभी आगमों में आगमोत्तम महारहस्य- 

समन्वित श्रीकुलार्णवतन्त्र ऊर्ध्वाम्नाय है । इससे महत्त्वपूर्ण कोई दूसरा आम्नाय नहीं है । 


श्रीकुलार्णवतन्त्र कुलदर्शन का महत्त्वपूर्ण आकर ग्रन्थ है । महामाहेश्वर श्रीमदरभिनव- 

गुप्तपादाचार्य द्वारा विरचित तन्त्रशासत्र के सर्वागमोपनिषद्रूप श्रीतन्त्रालोकनामक ग्रन्थ में 

यह स्पष्ट कर दिया गया है कि, अनुत्तर परमेश्वर की विसर्जन क्रिया में आनन्द, इच्छा, 

ज्ञान आदि के क्रम से उत्पन्न भिन्नावभासता क्रियाशक्ति का ही परिणाम है | यही विसर्जन 

क्रिया कौलिकी शक्ति के रूप में जानी जाती है । यही इसकी कुलप्रथनक्रिया का रहस्य है । 


अकुलस्यास्य देवस्य कुलप्रथनशालिनी । 

कौलिकी सा पराशक्तिरवियुक्तो यया प्रभु: ।।' 

Rate the PDF

Add Comment & Review

User Reviews

Based on
5 Star
0
4 Star
0
3 Star
0
2 Star
0
1 Star
0
Add Comment & Review
We'll never share your email with anyone else.
More »

Other PDFs in This Category