इस हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पूजन करें। अपनी जानकारी हेतु पूजन शुरू करने के पूर्व प्रस्तुत पद्धति एक बार जरूर पढ़ लें।
पवित्रीकरण :
बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से (कुश की ब्रह्मदण्डी से) निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें -
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ।।
पुण्डरीकाक्षः पुनातु, पुण्डरीकाक्षः पुनातु, पुण्डरीकाक्षः पुनातु,
आसन :
निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़के-
ॐ पृथ्वी त्वया धता लोका देवि त्वं विष्णुना घृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम् ॥
आचमन :
दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें-
ॐ केशवाय नमः स्वाहा,ॐ नारायणाय नमः स्वाहा,ॐ माधवाय नमः स्वाहा ।
यह बोलकर हाथ धो लें - ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।
दीपक
दीपक प्रज्वलित करें एवं हाथ धोकर दीपक पर पुष्प एवं कुंकुम से पूजन करें-
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसम्पदा शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते ॥
दीपो ज्योति परं ब्रहम दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते ॥
पुजन कर प्रणाम करे ।
निम्न मंगल मंत्र बोलें-
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष गुं शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः । वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व गुं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः शामा शान्तिरेधि ।
यतो यतः समीहसे ततो नोऽअभयं कुरु ।शन्नः कुरु प्राजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः । सुशान्तिर्भवतु ॥