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प्रौढ रचनानुवाद कौमुदी - Praudh Rachananuvad kaumudi PDF

प्रौढ रचनानुवाद कौमुदी - Praudh Rachananuvad kaumudi PDF Upayogi Books

by Kapila Dev Dwivedi
(0 Reviews) January 03, 2024
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January 03, 2024
Writer/Publiser
Kapila Dev Dwivedi
Categories
Sanskrita Study
Language
Hindi Sanskrit
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41.1 MB
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Free
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प्रौढ रचनानुवाद कौमुदी

प्रौढ रचनानुवाद कौमुदी - Praudh Rachananuvad kaumudi PDF

भूमिका

डॉ० कपिलदेव द्विवेदी ने प्रौढ रचनानुवादकौमुदी का निर्माण करके उस काम की पूर्ति की है जो प्रारम्भिक रचनानुवाद कौमुदी Prarambhik Rachananuvad Kaumudi से आरम्भ हुआ था। मैं स्वयं संस्कृत व्याकरण और साहित्य का इतना ज्ञान नहीं रखता कि पुस्तक के गुण-दोषों की यथार्थ समीक्षा कर सकूँ । परन्तु उसका स्वरूप ऐसा है जिससे मुझको यह प्रतीत होता है कि वह उन लोगों को निश्चय ही उपयोगी प्रतीत होगी जिनके लिए उसकी रचना हुई है। मैं संस्कृत ग्रंथों को पढ़ता रहता हूँ। कभी-कभी संस्कृत में कुछ लिखने का भी प्रयास करता हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि इस पुस्तक से मेरे जैसे व्यक्ति को सहायता मिलेगी और कई भद्दी भूलों से त्राण हो जायेगा। यों तो संस्कृत के प्रामाणिक व्याकरणों का स्थान दूसरी पुस्तकें नहीं ले सकतीं, फिर भी जिन लोगों को किन्हीं कारणों से उनके अध्ययन का अवसर नहीं मिला है, उनके लिए प्रौढ- रचनानुवादकौमुदी जैसी पुस्तकें वस्तुतः बहुमूल्य हैं।

(१) पुस्तक लेखन का उद्देश्य-

यह पुस्तक कतिपय विशेष उद्देश्यों को लक्ष्य में रखकर लिखी गयी है। उनमें से विशेष उल्लेखनीय ये हैं:-

(क) संस्कृत के प्रौढ विद्यार्थियों को प्रौढ संस्कृत सिखाना।

(ख) अति सरल और सुबोध ढंग से अनु- बाद और निबन्ध सिखाना।

(ग) २ वर्ष में प्रौढ संस्कृत लिखने और बोलने का अभ्यास कराना ।

(घ) अनुवाद के द्वारा सम्पूर्ण व्याकरण सिखाना।

(ङ) संस्कृत के मुहावरों का वाक्य-रचना के द्वारा प्रयोग सिखाना।

(च) प्रौढ संस्कृत-रचना के लिए उपयोगी समस्त व्याकरण का अभ्यास कराना।

(छ) इस पुस्तक के प्रथम दो भाग प्रारम्भिक छात्रों के लिए हैं, यह प्रौढ विद्यार्थियों के लिए है। अतः यह उचित है कि इस पुस्तक का अभ्यास करने से पूर्व छात्र 'रचनानुवादकौमुदी' का अभ्यास अबश्य कर लें।

लघुसिद्धान्त कौमुदी 

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(२) पुस्तक की शैली-

यह पुस्तक कतिपय नवीनतम विशेषताओं के साथ प्रस्तुत की गयी है।

(क) इंग्लिश, नर्मन, फ्रेंच और रूसी आदि भाषाओं में अपनायी गयी वैज्ञानिक पद्धति इस पुस्तक में अपनायी गयी है।

(ख) प्रत्येक अभ्यास में २५ नए शब्द तथा कुछ व्याकरण के नियम दिए गए हैं।

(ग) शब्दकोश और व्याकरण से सम्बद्ध सभी मुहावरे प्रत्येक अभ्यास में सिखाए गए हैं।

(३) अभ्यास-

इस पुस्तक में ६० अभ्यास हैं। प्रत्येक अभ्यास दो पृष्ठों में हैं। बाईं ओर शब्दकोष और व्याकरण हैं, दाई ओर संस्कृत में अनुबादार्थ गय तथा संकेत हैं।

(४) शब्दकोष -

(क) प्रत्येक अभ्यास में २५ नये शब्द हैं। शब्दकोष में ४८ वर्ग भी दिए गए हैं। प्रयत्न किया गया है कि सभी उपयोगी शब्दों का संग्रह हो । अमरकोश के प्रायः सभी उपयोगी शब्द विभिन्न बगों में दिए गए हैं। यह भी ध्यान रखा गया है कि प्रौढ़ रचना को ध्यान में रखते हुए उच्च संस्कृत-साहित्य में प्रयुक्त शब्दों को विशेष रूप से अपनाया जाए। प्रत्येक वर्ग में उस वर्ग से सम्बद्ध सभी उपयोगी शब्द दिए गए हैं।

(ख) यह भी प्रयत्न किया गया है कि आधुनिक प्रचलित शब्दों और भावों के लिए भी उपयोगी संस्कृत शब्द दिए जाएँ। इसके लिए दो बातें मुख्यतया ध्यान में रखी गयी हैं-

१. जिन भावों के लिए प्राचीन संस्कृत-

अन्यों में कोई शब्द मिल सकता है, वहाँ उन संस्कृत शब्दों को अपनाया गया है। जो प्राचीन संस्कृत शब्द नवीन अथों का बोध करा सकते हैं, उनका नवीन अर्थों में प्रयोग किया गया है।

२. जिन शब्दों के लिए संस्कृत में प्राचीन शब्द नहीं हैं, उनके लिए नए शब्द बनाए गए हैं। कहीं पर ध्वन्यनुकरण के आधार पर और कहीं पर भावानुकरण के आधार पर।

जैसे- मिष्टान्नवर्ग और पानादिवर्ग में सभी मिठाइयों, नमकीन, चाय, टोस्ट और पेस्ट्री आदि के लिए शब्द हैं। नवशब्द-निर्माण बाले स्थलों पर अपने विवेक के अनुसार कार्य किया गया है। ऐसे स्थलों पर मतभेद सम्भव है। जो विद्वान् नवीन भायों के लिए अधिक उपयुक्त शब्दों का सुझाव देगे, उनके सुझावों पर विशेष ध्यान दिया जायगा ।

(ग) शब्दकोष को चार भागों में विभक्त किया गया है।

इसके लिए इन संकेतों को स्मरण कर से। शब्दकोष में

(क) का अर्थ है- संज्ञा या सर्वनाम शब्द। (ख) का अर्थ है-धातु या किया-शब्द । (ग) अव्यय । (घ) विशेषण । (क) भाग में दिए अधिकाश शब्द राम, रमा या गृह के तुल्य चलते हैं। शब्दों के स्वरूप से इस बात का बोध हो जाता है। जहाँ पर सन्देह हो, बहाँ पर पुस्तक के अन्त में दिए हिन्दी-संस्कृत शब्दकोप से सहायता लें। यहाँ पर लिग निर्देश विशेष रूप से किया गया है।

(ख) भाग में दी गयी धातुओं के गण और पद के विषय में जहाँ पर सन्देह हो, यहाँ पर धातुरूप-कोष में दिए हुए धातु के विवरण से सन्देह का निराकरण करें।

(ग) भाग में दिए हुए शब्द अव्यय हैं, इनके रूप नहीं चलते है।

(घ) भाग में दिए शब्द विशेषण हैं, इनके लिश आदि विशेष्य के तुल्य होंगे। विशेषण-शब्द तीनों लिगों में आते हैं।

शब्दकोष

(घ) शब्दकोष में यह भी ध्यान रखा गया है कि जिस शब्द या धातु का प्रयोग उस अभ्यास में सिखाया गया है, उस प्रकार के अन्य शब्दों या धातुओं का भी अभ्यास उसी पाठ में कराया जाए। इसके लिए दो प्रकार अपनाए गए हैं।

१. उस प्रकार के शब्द या धातुएँ शब्दकोष में की गयी है।

२. उस प्रकार के शब्दों या धातुओं का प्रयोग उसी पाठ के 'संस्कृत बनाओ' वाले अंश में सिखाया गया है। कोष्ठ मे ऐसे शब्दों का संकेत कर दिया गया है।

(ङ) शब्दकोष के विषय में इन संकेतों का उपयोग किया गया है।

१. 'वत्' अर्थात् इसके तुल्य रुप चलेगे। जैसे- रामवत्, राम के तुल्य रूप चलेंगे । भवतियत्, भू धातु के तुल्य रुप चल्लेगे।

२. डैश, यहाँ से लेकर यहाँ तक के शब्द या धातु ।

३. अर्थात् 'का रुप बनता है'। भू भवति, अर्थात् भू का भवति रूप बनता है। (च) शब्दकोष में शब्द विविध वगों के अनुसार रखे गए हैं। प्रयत्न किया गया है कि उस वर्ग से सम्बद्ध शब्द उसी अभ्यास में दिए जायें। अतः प्रत्येक वगों से सम्बद्ध शब्दों को उसी अभ्यास में देखें। प्रत्येक अभ्यास के शब्दकोष मे (क) (ख) आदि के बाद निर्देश कर दिया गया है कि (क) या (ख) आदि में कितने शब्द दिए गए हैं।

(छ) प्रत्येक अभ्यास मे २५ नए शब्द है। प्रत्येक अभ्यास के प्रारम्भ में निर्देश किया गया है कि अयतक कितने शब्द पढ़ चुके हैं। ६० अभ्यासों में १५०० शब्दों का अभ्यास कराया गया है। लगभग इतने ही नए शब्दों और मुहावरो का प्रयोग 'संकेत' में सिखाया गया है। इस प्रकार लगभग ३ हजार शब्दों का जान विद्यार्थी को हो जाता है। शब्दकोष के शब्दों का वर्गीकरण है:-

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