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श्री विश्वकर्मा आरति तथा पुष्पान्जली मन्त्र - Viswakarma Arati and Pushapanjali PDF

श्री विश्वकर्मा आरति तथा पुष्पान्जली मन्त्र - Viswakarma Arati and Pushapanjali PDF Upayogi Books

by Unknown
(0 Reviews) February 13, 2023
Guru parampara

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February 13, 2023
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Unknown
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Arati /Bhajan
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श्री विश्वकर्मा आरति तथा पुष्पान्जली मन्त्र

कपूरवर्तिसंयुक्तं गोघृतेन सुपूरितम्।


नीराजनं गृहाणेदं कृपया सौख्यवर्द्धन! ।।२९।।




॥ श्रीविश्वकर्मा आरती ॥


प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवोप्रभु विश्वकर्मा।


सुदामा की विनय सुनीऔर कंचन महल बनाये।


सकल पदारथ देकर प्रभु जीदुखियों के दुख टारे॥


प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो...॥


विनय करी भगवान कृष्ण नेद्वारिकापुरी बनाओ।


ग्वाल बालों की रक्षा कीप्रभु की लाज बचायो॥


प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो...॥


रामचन्द्र ने पूजन कीतब सेतु बांध रचि डारो।


सब सेना को पार कियाप्रभु लंका विजय करावो॥


प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो...॥


श्री कृष्ण की विजय सुनोप्रभु आके दर्श दिखावो।


शिल्प विद्या का दो प्रकाशमेरा जीवन सफल बनावो॥


प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो...॥




पुष्पाञ्जलि करे 




ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तनि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।


ते ह नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा: ॥


ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने।


नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।


स मस कामान् काम कामाय मह्यं।


कामेश्र्वरो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय।


महाराजाय नम: ।


ॐ स्वस्ति, साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ट्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं । समन्तपर्यायीस्यात् सार्वभौमः सार्वायुषः आन्तादापरार्धात् ।पृथीव्यै समुद्रपर्यंताया एकरा‌ळ इति ॥

ॐ तदप्येषः श्लोकोभिगीतो। मरुतः परिवेष्टारो मरुतस्यावसन् गृहे। आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ॥


नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च।

पुष्पाञ्जलिस्वरूपाणि गृह्यतां वास्तुनन्दनः।।३०।।

॥ सायुधाय सोपकरणाय  विश्वकर्मणे मंत्रपुष्पांजलिं  समर्पयामि ॥


प्रदक्षिणा करे 


यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे- पदे॥३१॥

अब साष्टाङ्ग करे 


अन्त में इस मन्त्र से विसर्जन करे


 विसर्जन 


समस्तैरुपचारैश्च याऽर्चनाऽत्र मया कृता।

सा सर्वा पर्णतां यात ह्यपराधं क्षमस्व में।।३२॥


आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।

पूजां चैव न जानामि त्वं गतिर्दीनवत्सल!॥३३॥


देवशिल्पिन्महाभाग! देवानां कार्यसाधक।

विश्वकर्मन् नमस्तुभ्यं सदा शान्तिं प्रयच्छ में॥३४॥


यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्।

कामनाऽभीष्ट-सिद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च॥३५॥


भू-नेत्र-नभ-नेत्रेऽब्दे भाद्रमासेऽर्कवासरे।

जन्माष्टम्यां तिथौ काश्यां श्रीद्विजेन्द्रविनिर्मिता॥१॥


सुख-शान्तिप्रदा पुण्या पद्धतिर्विश्वकर्मणः।

बोभूयात् सर्वदा लोके लोककल्याणकारिणी॥२॥

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