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तुलसी विवाह पद्धति - Tulasi Vivaha Paddhati [PDF]

तुलसी विवाह पद्धति - Tulasi Vivaha Paddhati [PDF] Upayogi Books

by Dr Akhilesh dwivedi
(0 Reviews) November 22, 2023
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November 22, 2023
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Dr Akhilesh dwivedi
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Karmakanda
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Hindi Sanskrit
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तुलसी विवाह विधि

तुलसी विवाह पद्धति - Tulasi Vivaha Paddhati [PDF]

॥ तुलसी विवाह महात्म्य ॥

कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को हमारे देश में देवोत्थान, तुलसी विवाह एवं भीष्म पंचक एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन तुलसी पूजन का उत्सव पूरे भारत वर्ष में मनाया जाता है। हमारे धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक के पावन महिने में जो भक्त मां तुलसी का विवाह भगवान से करवाते हैं, उनके पिछले जन्मो के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

शास्त्रों में कहा गया है कि आषाढ़ मास देवशयनी एकादशी से कार्तिक मास तक के समय को चातुर्मास कहा गया हैं। इन चार महीनों में भगवान विष्णु क्षीरसागर की अनंत शैय्या पर शयन करते हैं, जिसकारण कृषि के अलावा समस्त शुभ कार्य जैसे शादी-व्याह, व्रत, नए घर में प्रवेश जैसे समस्त मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। किन्तु देवउठनी एकादशी से भगवान के जागने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है एवं मांगलिक कार्यों की

शुरुआत हो जाती है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य के मिथुन राशि में आने पर भगवान श्री हरि विष्णु शयन करते हैं और तुला राशि में सूर्य के जाने पर भगवान शयन कर उठते हैं। भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है।

पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में कहा गया है कि एकादशी-माहात्म्य के अनुसार श्री हरि-प्रबोधिनी यानि देवोत्थान एकादशी का व्रत करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा सौ राजसूय यज्ञों के बराबर फल मिलता है। इस परम पुण्य प्रदायक एकादशी के विधिवत व्रत से सब पाप नष्ट और भस्म हो जाते हैं, इस एकादशी के दिन जो भी भक्त श्रद्धा के साथ जो कुछ भी जप-तप, स्नान-दान, होम करते हैं, वह सब अक्षय फलदायक हो जाता है। कहते हैं कि समस्त सनातन धर्मी का आध्यात्मिक कर्तव्य है कि देवउठवनी एकादशी का व्रत अवश्य करें। इस व्रत को करने वाला दिव्य फल प्राप्त करता है।


तुलसी विवाह की कथा


शास्त्रों के अनुसार जालंधर नामक एक बहुत ही भयंकर राक्षस था जिसे की युद्ध में हराना नामुम्किन था

सभी देवतागण उनसे खौफ खाते थे और वह बहुत शक्तिशाली था जिसकी वजह से उसने पूरे संसार में अत्याचार कर रखा था। और उसकी वीरता का राज उसकी धर्मपत्नी वृंदा का उसके प्रति पत्नी धर्म का पालन करना था जिस कारणवश वह पूरे विश्व में सर्वविजयी बना हुआ था। जालंधर के अत्याचार के कारणवश सभी देवता भगवान विष्णु के पास सहायता मांगने पहुंचे तब भगवान विष्णु ने देवताओ की मदद करने का फैसला किया।

उसके बाद जब जालंधर युद्ध के लिए जा रहे थे तब भगवान विष्णु वृंदा के सतीत्व धर्म को भंग करने के लिए जालंधर का अवतार लेकर उनके पास पहुँच गए। उसके बाद जालंधर युद्ध में हार गया और उनकी मृत्यु हो गयी। उसके बाद उन्हें भगवान विष्णु के उस अवतार के बारे में पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया की आप एक पत्थर की मूर्त बन जायेंगे। उसके बाद वह अपनी पति की मृत्यु के पश्चात् उन्ही के साथ सती हो गयी। जहाँ उन्होंने अपने प्राण त्यागे वही पर तुलसी का पौधा उत्पन्न हो गया।

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