कापी संख्या १--
महर्षि भरद्वाजकृत "यन्त्रसर्वस्व " ग्रन्थ का एक प्रकरण यह "वैमानिक प्रकरण" है जिसमें ऐसे ४० प्रकरण थे । “वेमानिक प्रकरण" का ८ अध्याय १०० अधिकरणों ५०० सूत्रों में निबद्ध होना कहा गया है। यन्त्रकला जैसे इस प्रन्थ में भी आस्तिकता का प्रदर्शन करने के लिये ओ३म् को मुमुक्षुओं का त्रिमान बतलाया । वैमानिक प्रकरण से पूर्व 'विमानचन्द्रिका, व्योमयानतन्त्र, यन्त्रकल्प, यानविन्दु, खेटयानप्रदीपिका, व्योमयानार्कप्रकाश' इन विमानविषयक छ शास्त्रों का विद्यमान होना जोकि क्रमश नारायण, शौनक, गर्ग, वाचस्पति, चाक्रायणि, घुण्डिनाथ महर्षियों के रचे हुए थे। महर्षि भरद्वाज द्वारा वेद का निर्मन्थन कर "यन्त्र सर्वस्व " ग्रन्थ को मक्खन के रूप में निकाल कर दिए जाने का कथना । विमान शब्द का अर्थ सूत्रकार महर्षि भरद्वाज तथा भाचार्य विश्वम्भर आदि के अनुसार विपक्षी की भाति गति के मान से एक देश से दूसरे देश एक द्वीप से दूसरे द्वीप और एक लोक से दूसरे लोक को खाकाश में उडान लेने पहुँचने में समर्थ यान है। अपितु पृथिवी जल और भाकाश में तीनों स्थानों में गति करने वाला बतलाया गया (जिसे आगे त्रिपुर विमान नाम दिया है ) ।
विमान के ३२ रहस्यों का निर्देश करना, यथा- विमान का अदृश्यकरण, शब्दप्रसारगा, लखन, रूपाकर्षण, शब्दाकर्षण, शत्रुओं पर धूमप्रसारण शत्रु से बचाने को स्वविमान का मेघावृत करना, शत्रु के विमानों द्वारा घिर जाने पर उन पर ज्वालाशक्ति को प्रसारित करना - फेंकना, दूर से आतेहुए शत्रुविमान पर ४०८७ तरङ्ग फेंक कर उड़ने में असमर्थ कर देना, शत्रु सेना पर असह्य महाशब्द संघरणरूप ( शब्दजम) फेंक कर उसे भयभीत वधिर शिथिल तथा हृद्रोग से पीडित कर देना आदि । आकाश में विमान के सम्मुख विमानविनाशक श्राकाशीय पाच श्रावर्त (बवण्डरों ) का माना और उनसे विमान रक्षा का उपाय । विमान में विश्वक्रियादपण श्रादि ३१ यन्त्रों का स्थापन करना ||
कापी संख्या २--
विमानचालक यात्रियों को ऋतुओं की २५ विषशक्तियों के प्रभाव से बचने के लिये ऋतु ऋतु के अनुसार पहिनने और ओढने के योग्य वस्त्रों और भिन्न भिन्न भोजनों का विधान, अन्न भोजन के अभाव में मोदक आदि तथा कन्दमूलफलों एवं उनके मुरों रसों का विशेष सवन करना । विमान में उपयुक्त ऊष्मप लोहों के सौम, सोडा और मौखिक तीन बीज लोद्दों का वर्णन एवं शोधन तथा बीज लोहों की उत्पत्ति में भूगर्भ की आकर्षण शक्ति तथा पृथिवी की बाहिरी कक्षाशक्ति और सूर्यकिरणों भूततन्मात्राओं एवं ग्रहों के प्रभाव को निमित्त बतलाना, तीन सहस्र भूगर्भस्थ खनिज- रेखापक्तियों का निर्देश तथा सातवें रेखापक्तिस्तर मे तीन खनिजगर्भकोशों में सौम, सौण्डाल, मौलिक लोहों की उत्पत्ति का कथन ॥
कापी सख्या ३- विमान के भिन्न भिन्न यन्त्रों, कीर्लो (पेंचों) को भिन्न भिन्न लोहों से बनाने का विधान । लोहे की प्राप्ति के १२ प्रकार या स्थान बतलाए जिससे कि 'खनिज, जलज, ओषधिज, धातुज, कृमिज, क्षारज, अण्डज, स्थलज, अपभ्रंशक, कृतक' नामोंस लोहे कहे गए हैं। बीज लोहे सौम, सौण्डाल, मौर्त्विक कहे और प्रत्येक के ग्यारह ग्यारह भेद होने से ३३ भेद बतलाए हैं ।।
कापी संख्या ४-- विविध पर्थो के ज्ञानार्थ विमान में दर्पणयन्त्र 'विश्वक्रियादर्पण, शक्तया- कर्षण, वैरूप्यदर्पण, कुण्टिणीदर्पण, पिन्जुलादर्पण, गुहागर्भदर्पण, रौद्रीदर्पण लगाए जाना ||
कापी संख्या ५-
विमान की मिन्न भिन्न १२ गतिया चलन, कम्पन, ऊर्ध्वगमन, अधोगमन, मण्डलगति - चक्रगति — घूमगति, विचित्रगति, अनुलोमगति - दक्षिणगति, विलोम - गति - वामगति, पराङ्मुखगति, स्तम्भनगति, तिर्यग्गति-तिरछीगति, विविधगति या नानागति' विद्युत् के योग से या विद्युत्शक्ति से होती हैं। विद्युत् से चालित या विद्यन्मय विश्वक्रयादर्श आदि ३२ यन्त्रों का बन । शत्रु के द्वारा किए समस्त क्रिया- कलाप को दिखलाने वाला विश्वक्रियाकर्षणादर्श यन्त्र का विधान ||