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यज्ञदीपिका हिन्दी व्याख्या सहित - Yagya Dipika With Hindi By Pt Dipachand Shastri

यज्ञदीपिका हिन्दी व्याख्या सहित - Yagya Dipika With Hindi By Pt Dipachand Shastri Upayogi Books

by आचार्य पं दीपचन्द शास्त्री
(0 Reviews) December 05, 2023
Guru parampara

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Update
December 05, 2023
Writer/Publiser
आचार्य पं दीपचन्द शास्त्री
Categories
Karmakanda
Language
Hindi Sanskrit
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106.2 MB
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Free
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Yagya Dipika With Hindi Commentary By Pt Dipachand Shastry

यज्ञदीपिका PDF free Download


माँ शारदा व परमपूज्य आचार्य श्रीघनश्यामजी शास्त्री की कृपा से  'यज्ञदीपिका' के इस संस्करण के अन्तर्गत गणपत्यादि देवताओं की वैदिक मन्त्रों के द्वारा सविधि पूजन तथा यज्ञमण्डप सहित सम्पूर्ण यज्ञविधान सामान्य पुरोहित भी  सुगमता से सुसम्पन्न करवा सके इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए लेखन व संकलन किया है।

आज 'यज्ञदीपिका' के माध्यम से दशविधस्नान व जलयात्राविधान से प्रारम्भ करके विस्तृत रूप से सम्पूर्ण पूजाविधि शास्त्रीय प्रमाणो सहित गणपत्यादिमण्डलों का  पूजन, श्रीलक्ष्मीनारायणपूजन, शिवशक्तिपूजन तथा सविस्तार यज्ञमण्डप व यज्ञ विधान का सम्पादन करके सभी विद्वानों से आशीर्वाद की कामना करता है । 

पूज्य गुरुदेव के चरणों की सेवा से जो गुरुजी का आशीर्वाद मिला उसके द्वारा वैदिक परम्परा को जीवन्त रखने का सुअवसर प्राप्त हुआ। विष्णुलोक को प्राप्त दादाजी की इच्छा थी कि विद्वानों का कृपापात्र बनूँ। मन्त्रों का संकलन करने की कई दिनों से प्रबल इच्छा थी वो आप सभी विद्वानों के सहयोग व आशीर्वाद से 'यज्ञदीपिका' के रूप में पूर्ण हुई है।

माँ शारदा की विशेष कृपादृष्टि से आप सभी विद्वानों का विशेष स्नेह प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। 

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःख भाग्भवेत्‌।। 


इस शुभाकांक्षा को लेकर यज्ञदीपिका का संकलन शुरू किया था तब से सभी विद्वानों का स्नेह प्राप्त हो रहा है। सभी विद्वानों से करबद्ध विनती है कि “यज्ञदीपिका' के संकलन में मन्त्रों को लिपिबद्ध करते समय किसी प्रकार की अशुद्धि रह गई हो तो उसे सुधार कर उच्चारण करते हुये अवगत कराने की कृपा करें। आज हमारी वैदिक परम्परा धीरे-धीरे लुप्त हो रही हे जो कि एक बड़ी चिन्ता का विषय है। हम सभी मिलकर इंसे पुन: स्थापित करके वैदिककाल से चली आ रही श्रुति परम्परा को सुरक्षित रखने का पूरा प्रयास करना हमारा मुख्य कर्तव्य बनता है। हमारे ऋषियों ने दिन-रात कठोर परिश्रम करके इसे जीवन्त रखा इसी उद्देश्य को लेकर “यज्ञदीपिका' में अधिक से अधिक वैदिकमन्त्रों को समावेशित किया है। 


तमसो मा ज्योतिर्गमय। 

जब सूर्य उदय होता है तो दीपक जलाने की आवश्यकता नहीं होती है उसी प्रकार जब वेदमन्त्रों का उच्चारण होता है तो अन्य स्तुतियों की आवश्यकता ही कहाँ शेष रह जाती है अर्थात्‌ वेदमन्त्रों में सूर्य के समान कोने-कोने से अन्धकार मिटाने की शक्ति विद्यमान रहती है, इसीलिए विद्वानों को ज्यादा से ज्यादा वेदमन्त्रों का उच्चारण करना चाहिए। जिस प्रकार अग्नि की एक चिंगारी रुई के ढेर को नष्ट कर सकती उसी प्रकार शान्त और शुद्ध चित्त से वेदमन्त्रों क उच्चारण करने से जो ऊर्जा और आत्मबल मिलता है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। 

गुरु परम्परा सरल कर्मकाण्ड के लिए यह एप डाउनलोड करें 

व्यक्ति का स्वास्थ्य मन से जुड़ा हुआ रहता है जब इंसान का मन शुद्ध होता है तो तन स्वत: शुद्ध हो जाता है। जब मन बलवान होता है तो शरीर कमजोर होकर भी बलवान रहता है जैसे हाथी दीर्घाकार शरीर पाकर भी एक छोटे शरीर वाले सिंह से हार को प्राप्त करता है, इसीलिए मन को स्वस्थ व बलिष्ठ बनाने के लिए प्रभु की सेवा बहुत जरूरी है ईश्वर की सेवा से मानसिक विकारों का समन होता है, जिससे मन प्रसन्‍न व तन स्वस्थ रहता है।

संस्कृत भाषा सभी भाषाओं की जननी है और माँ हमेशा सब को प्यारी होती है विश्व में जितनी भी भाषाएँ है उनमें से सबसे मधुर व सरस भाषा संस्कृत है, उसी मधुर भाषा में आपकी यज्ञदीपिका को लिपिबद्ध किया गया है। संस्कृत भाषा को देवताओं की भाषा बताया गया है इसलिए देवताओं को प्रसन्न करने व उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए देववाणी संस्कृत का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करना चाहिए। 

मन्त्रमूल गुरोर्वाक्य 

जब गुरुकृपा होती है तो व्यक्ति के हृदय में ज्ञानरूपी दीपक प्रज्वलित हो जाता है और व्यक्ति के प्रत्येक शब्द में भगवान की चर्चा होने लगती है और वही अज्ञानी विद्वानों की श्रेणी में आने लगता है। गुरु के मुख से निकला प्रत्येक वाक्य मन्त्र होता है इसलिए गुरु के शब्दों पर संदेह सपने में भी नहीं करना चाहिए। शास्त्रं में कहा कि.गुरु पर संदेह करने वाले को नरक में भी जगह नहीं मिलती है। 

 मोक्षमूल गुरोः कृप्पा 

शास्त्रों का ज्ञान अपार समुद्र है जब गुरु की कृपा हो जाती है तो उसे वह क्षणभर में पार कर लेता है। जब गुरु की दृष्टि बेडोल पत्थर पर पड़ती है तो पत्थर पारस बन जाता है अन्त में गुरु की कृपा मोक्ष का कारण बन जाती है। 

शेखावाटी अँचल के अग्रगण्य विद्वान्‌ आचार्य श्री विनोद कुमार जी बालरासरिया ने यज्ञदीपिका के संकलन कार्य में मेरा विशेष सहयोग किया तथा “द भारतीय विद्या प्रकाशन' के स्वामी श्री राकेश जी जैन की सहयोगी संस्था  “श्रीकाशी विश्वनाथ संस्थान' के श्री रवीश जी जैन, श्री रजत जी जैन के सहयोग से पुस्तक का प्रकाशन किया जा रहा है। इन्होंने अपनी मेहनत व परिश्रम से पुस्तक को अच्छा स्वरूप देने का कार्य किया। इसके लिए सभी को मैं अपनी ओर से धन्यवाद ज्ञापन करता हूँ! 

बसन्त पंचमी, विक्रम सम्वत्‌ २०७८

आचार्य पं० दीपचन्द शास्त्री

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