उद्यापन के दिन यजमान नित्यक्रिया से निवृत होकर शुभ्र या रेशमी वस्त्र धारण करे। अपनी पत्नी को उसी प्रकार पवित्र करके सपत्नीक शुद्ध मन होकर आसन पर बैठे।
' ॐ पवित्रेस्थो: ' इस मन्त्र से यजमान पवित्री धारण करे और भगवान का ध्यान करे । पुनः 'अपवित्रः पवित्रो वा' इस मंत्र से पवित्र करे । यजमान के हाथ में अक्षत, पुष्प, सुपारी देकर ॐ आनोभद्रा-इत्यादि मन्त्र पढ़ना चाहिये। फिर यजमान को दक्षिण हाथ में द्रव्य, अक्षत, सुपारी, पृथ्वी, गौरी और गणेश का पूजन कलश स्थापन, आचार्य वरणादि करके संकल्पित सब क्रियाओं का सम्पादन करना चाहिए।
ततः पूर्वनिर्मित सर्वतोभद्र पर ब्रह्मादि देवताओं का आवाह्नन करना चाहिये। उसके ऊपर ताम्र का कलश स्थापित करना चाहिये। कलश में चावल भरा हो, उसके ऊपर
'सहस्त्र शीर्षा पुरुषः इत्यादि मंत्रों से लक्ष्मी सहित विष्णु का आवाह्नन करना चाहिए। अष्टदल के आठों पत्रों लर पूर्वादि क्रम से अग्नि, इन्द्र, प्रजा पति, विश्वदेवा, ब्रह्मा, वासुदवे, श्रीराम का नाम लेकर आवाह्नन करना चाहिए, फिर चारों दिशाओं में क्रमशः रुक्मिणी, सत्यभाभा, जाम्बवती और कालिन्दी का आवाह्नन करना चाहिये । चारों कोणों में आग्नेयादि क्रम से शंख, चक्र, गदा का आवाह्नन करना चाहिए। कलश के आगे गरुड़ का आवाह्नन होना चाहिए। ततः पूर्वादि क्रम से इन्द्रादि लोकपालों का आवाह्नन करके षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। चांदी का पात्र हो । अष्टदल कमल बनाकर प्रधान देवता का आवाह्नन करना चाहिए।
फिर भगवान के सर्वांग शरीर का पूजन और नमस्कार करना चाहिए। स्नान, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल से पञ्चोपकार पूजन करना चाहिए। पात्र में जलदान-नारियल, अक्षत, फूल, चन्दन और सोना रखकर घुटने के बल बैठकर इस श्लोक
नारायणं हृषीकेश लक्ष्मीकान्त दयानिधे ।
गृहाणार्थ्यं मया दत्तं व्रत्तं सम्पूर्ण हेतवे।।
से अर्घ्य देना चाहिए। इस के पश्चात इस दि का कृत्य समाप्त करके गाने-बजाने से रात्रि व्यतीत करे। दूसरे दिन यजमान तथा आचार्य नित्य कृत्य करके पुनः आचार्य' अपवित्रः पवित्रेस्थो व आनो भद्रा, आदि मन्त्रों पाठ करके हवन का संकल्प करे और आवाहित देवताओं का पंचोपचार से पूजन करे।
ततः 'सहस्त्रशीर्षा पुरुषः' इत्यादि 16 मन्त्रों से प्रधान के लिए हवन करना चाहिए। आवश्यकतावश केवल घी या पायस घी या पायसान्नयुक्त घी का हवन करना चाहिए।
हवन के पश्चात तीन बार अग्नि की प्रदक्षिणा करे। फिर जानु के बल बैठकर पुरुषसूक्त का पाठ करना चाहिए। ततः शेष हव्य तथा आज्य का हवन करना चाहिए। ततः आचार्य प्रायश्चित संकल्प करावे और हवन समाप्त करे।
ब्राह्मण को पूर्ण पात्र का दान दे। आचार्य को दक्षिणा के साथ सवत्सा सालंकारा श्वेत गाय दे।
यजमान 12 ब्राह्मणों को केशवादि 12 देवताओं का स्वरूप मानकर उनका पूजन करे, 2 कलश, दक्षिणा धन, मिठाई और वस्त्र से युत्त करके दे। ततः प्रधान पीठ पर कल्पित केशवादि दवताओं का उत्थापन करके आचार्य को दान दे । ततः आचार्य वैदिक तथा तन्त्रोक्त जल छिड़के । अग्नि की पूजा करे। फिर प्रार्थना करे विसर्जन करे । ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा सहित ताम्बूल दे, स्वयं भी सपरिवार इष्ट मित्रों सहित भोजन करे ।
इस प्रकार विधिपूर्वक योग्य आचार्य के निर्देशन में उद्यापन करने से एकादशी व्रत की सिद्धि होती है
रोली, मौली, धूपबत्ती, केसर, कपूर, सिन्दूर, चन्दन, होरसा, पेड़ा, बतासा, ऋतुफल, केला, पान सुपारी, रुई, पुष्पमाला, पुष्प, दूर्वा, कुशा, गंगाजल, तुलसी, अग्निहोत्र, भस्म, गोमूत्र, घृत, शहद, चीनी, दूध, यज्ञोपवीत, अबीर (गुलाल), अभ्रक, गुलाब जल, धान का लावा, इत्र, शीशा, इलायची, जावित्री, जायफल, पञ्चमेवा, हलदी, पीली सरसों, मेंहदी की बुकनी, नारियल, गिरि का गोला, पंचपल्लव, वंदनवार, कच्चा सूत, मूंग की दाल, उछद काला, सूप, विल्व पत्र, भोज पत्र, पंचरत्न, सर्वोषधि सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, पंचरत्न, नवग्रह, समिधा, चौकी, पीढ़ा, घण्टा, शंख, कंटिया, कलश, गंगा सागर, कटोरी कटोरा चरुस्थाली, आज्यस्थाली, बाल्टी, कलछी, सँड़ासी, चिमटा, प्रधान प्रतिमा सुवर्ण की, प्रधान प्रतिमा चांदी की, चांदी की कटोरी, पंचपात्र, आचमनी, अर्घा, तष्टा, सुवर्णजिव्हा, सुवर्ण शलाका, सिंहासन, छत्र, चमर, तिल, चावल, यव, घृत, चीनी, पंचमेवा, भोजनपत्र, बालू, ईंट, हवनार्थ लकड़ी आम की गोयँठा, दियासलाई और यज्ञपात ।
वरण सामग्री-
धोती, दुपट्टा , अँगोछा, यज्ञोपवीत, पंचपात्र, आचमनी, अर्घा, तष्टा, लोटा, गिलास, छाता, छड़ी, कुशासन, कंबलासन, कटोरी (मधुपर्कार्थ), गोमुखी, रुद्राक्षमाला, पुष्पमाला, खड़ाऊँ, अँगूठी, देवताओं को वस्त्रादि । शय्या सामग्री-प्रतिमा विष्णु भगवान की, पलंग, तकिया, चादर, दरी, रजाई, पहनने के वस्त्र छाता, जूता, खड़ाऊँ, पुस्तक, आमन, शीश घंटी पानदान, छत्रदान, भोजन के बर्तन, चूल्हा, लालटेन, पंखा, अन्न, घृत, आभूषण ।
समाप्त
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