जय श्री राधे जय श्री कृष्ण आप सभी से हाथ जोडकर निवेदन है । आपके इस प्रेम को सदा हमारे साथ बनाएं रखें । चलिए आज की मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा का शुभारम्भ करते है ।
शौनकादि ऋषियों ने सूतजी महाराज से प्रश्न किया कि हे महाराज! माता-पिता को संसार और नरक के बंधनों से मुक्त करने का सबसे सरल और उपयुक्त साधन क्या है?
सूतजी महाराज जी आज्ञा करते हैं हे विप्रवर! आज आपने जो प्रश्न पूछा है, यह प्रश्न द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण से महाराज युधिष्ठिर ने पूछा था। उस समय मार्गशिर्ष माह के शुक्लपक्ष में पड़ने वाली एकादशी की कथा सुनाते हुए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-
हे राजन! मोक्षदा एकादशी सभी प्रकार के पापों को दूर कर जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष को प्रदान करने वाली एकादशी है। यह एकादशी मार्गशिर्ष माह के शुक्लपक्ष में आती है। हे राजन, इनकी महिमा सुनने मात्र से मनुष्य को वाजपेय नामक यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है।।9।।
हे राजन! इस एकादशी कि महिमा को और स्पष्ट रुप सें समझाने के किए एक कल्याणकारी कथा प्रचलित है ध्यान से सुनो।
जिनके पूर्वजों का उद्धार नहीं हुआ है, अर्थात् जिनके वंशजों के पूर्वजों की अधोगति हो गई है, वे इस मोक्षदा एकादशी का भक्ति के साथ व्रत करने तथा महिमा सुनने से उनके सभी पितरों को उत्तम गति प्राप्त होती है। इसीलिए भक्ति से इसकी महिमा श्रवण करो ।
चम्पक नाम के एक शहर में वैखानस नाम का एक राजा राज्य करता था , जो प्रजा के साथ बच्चों जैसा व्यवहार करता था। उस नगर में वेदों में पारंगत चार ब्राह्मण भी रहते थे। एक दिन की बात है. रात को सोते समय राजा को एक विचित्र स्वप्न आया। रात को स्वप्न में उसने अपने पिता को नरक में देखा। राजा वैखानस ने उन चारों ब्राह्मणों के सामने अपना सारा स्वप्न का वृत्तान्त सुनाया ।
हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! यदि मेरे माता-पिता नरक में हैं, तो मेरी संपत्ति और मेरे होने का क्या उपयोग? मैने सुना है कि पितरों को नरक जाने से बचाने वाले सन्तान को पुत्र कहते हैं । पुत्र का कर्तव्य है कि वह अपने पिता की मुक्ति के लिये उपाय करे । मेरे पिता के नरक में होने के स्वप्न ने मुझे बेचैन कर दिया है। मुझे क्या करना चाहिए, कहाँ जाना चाहिए?
हे श्रेष्ठ ब्राह्मण! कृपया मुझे वह उपाय बताएं जिस दान व्रत अथवा यज्ञ अनुष्ठान से मेरे पितरों को मुक्ति मिले। क्योंकि जिस पुत्र का पिता नरक में हो, उस पुत्र का जन्म व्यर्थ है। अतः कृपा करके मुझे पितृमोक्ष का मार्ग बताइये। राजा की यह प्रार्थना सुनकर वे ब्राह्मण कहते हैं-
हे राजन! यहीं पास में एक पर्वत नामक ऋषि रहते है। आप वहीं चलें। वह पर्वत मुनि अवश्य ही आपकी मनोकामना पूरी करेंगे ।
इस प्रकार ब्राह्मणों से आज्ञा पाकर वह राजा पर्वत ऋषि के आश्रम में जाते है। वहाँ वे ऋषियों से घिरे हुए ब्रह्माजी के समान प्रतीत हो रहे थे। जैसे ही राजा वैखानस ने ऋषियों में श्रेष्ठ पर्वत ऋषि को देखा, उन्होंने अपने को सिर झुकाकर पृथ्वी पर दण्डवत प्रणाम किया।
जब मुनि ने राजा को आशीर्वाद देते हुए कुशल से उसके राज्य के बारे में पूछा तो राजा ने उसे उसके पिता के नर्क में रहने के सपने के बारे में बताया। राजा की सारी कहानिय सुनने के बाद मुनि ध्यान में लीन हो गये और उन्हें राजा के अतीत और भविष्य के बारे में जानकारी प्राप्त हुई।
ऋषि ने कुछ क्षण ध्यान करने के बाद उस महान राजा को उत्तर दिया कि - हे राजन! मैंने जान लिया कि तुम्हारे पिता किस कर्म से नरक को प्राप्त हुए हैं । अब आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है. मैं आपको इससे छुटकारा पाने का उपाय भी बताऊंगा.
आपके पिछले जन्म में आपके पिता हमेशा आपकी सती-साध्वी माँ का अपमान किया करते थे, जो आपकी सौतेली माँ से डरती थी। एक दिन आपकी माँ यौन इच्छा से प्रेरित होकर आपके पिता के सामने संभोग के लिए प्रस्ताव रखती है।
आपके पिता, जो अपनी सौतेली माँ के प्रभाव में थे, उन्होंने अपनी प्रथम पत्नी के ऋतुदान के अनुरोध को अस्वीकार कर देते हैं।
उस सज्जन तथा धर्मपरायण पत्नी की इच्छा का अपमान करने के पाप के कारण तुम्हारे पिता सदा के लिये नरक में चले गये हैं । मुनि से यह सब सुनकर राजा बैखानस उत्सुक होते हुए उन्होंने मुनि से प्रश्न किया
हे मुनिश्रेष्ठ! कौन सा व्रत या दान है? जिससे मेरे पिता को नरक से मुक्ति मिल सके। पाप के कारण उत्पन्न नरक से छुटकारा पाने के लिये क्या किया जा सकता है इसका उपदेश करें ।
तब मुनि ने कहा- हे राजन! आपके पिता को नरक से उद्धार करने का एकमात्र उपाय 'मोक्षदा' नामक एकादशी की पूजा और भक्ति के साथ व्रत करना है जो मार्गशिर्ष महीने के शुक्लपक्ष में आती है।
उस एकादशी का व्रत करो और उसका सारा पुण्य अपने पिता को अर्पित कर दो। उस पुण्य के प्रभाव से तुम्हारे पिता नरक से बच जायेंगे। मुनि का ऐसा उपदेश सुनकर राजा मुनि से आज्ञा लेकर अपने महल में लौट आया।
हे युधिष्ठिर! राज्य लौटने के बाद अंतःपुर के सभी निवासियों और यहां तक कि स्वयं राजा ने भी मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी यानी मोक्षदा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। इसके अलावा, उन्होंने उस पुण्य को राजा के दिवंगत पिता के नाम पर अर्पित कर दिया।
उस पुण्य के प्रभाव से वैखानस के पिता नरक से स्वर्ग चले गये। हे राजन! इस प्रकार जो मनुष्य इस मोक्षदा एकादशी का व्रत करेगा, उसके सभी पाप नष्ट हो जायेंगे और मृत्यु के बाद भी वह पूर्ण सायुज्य मुक्ति प्राप्त करेगा ।।
मोक्षदा एकादशी के समान नरक से सहज मुक्ति प्रदान करने वाला कोइ और व्रत नहीं । अपनी मृत्यु के बाद व्रत करने वाले स्वयं को और उसके वंश के लोगों को मुक्ति मिलेगी यह व्रत नरकवासी पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए सर्वोत्तम है
इति श्री भविष्योत्तर पुराणे श्रीकृष्ण युधिष्ठिर संवादे मार्गशिर्ष मोक्षदा एकादशी व्रत कथा वर्णनं सम्पूर्णम्