(Narasimha Jayanti 2025 Vrat Katha, Pauranik Kahani aur Vaigyanik Drishti se Vishleshan)
भूमिका:
नृसिंह जयंती भगवान विष्णु के चौथे अवतार "नृसिंह" के प्रकट होने का पावन दिन है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु ने आधे सिंह और आधे मानव रूप में प्रकट होकर अपने परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी और अत्याचारी राक्षस हिरण्यकशिपु का वध किया था। यह पर्व भक्तों के लिए आस्था, श्रद्धा और अन्याय पर न्याय की विजय का प्रतीक है।
भगवद पुराण, विष्णु पुराण और अन्य धर्मग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, हिरण्यकशिपु एक शक्तिशाली असुर था जिसने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से यह वर प्राप्त किया था कि वह न दिन मरेगा, न रात में; न घर में, न बाहर; न किसी मानव द्वारा, न जानवर द्वारा; न अस्त्र से, न शस्त्र से। वर प्राप्त कर वह अत्यंत अहंकारी और अत्याचारी बन गया।
हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भगवद भक्त थे और हर समय "नारायण नारायण" का जाप करते थे। यह बात हिरण्यकशिपु को सहन नहीं हुई और उसने अपने ही पुत्र को मारने का कई बार प्रयास किया। अंततः जब उसने प्रह्लाद को स्तंभ से भगवान को बुलाने को कहा, तब भगवान विष्णु "नृसिंह" रूप में उस स्तंभ से प्रकट हुए — आधा नर और आधा सिंह रूप में। उन्होंने सन्ध्याकाल में (न दिन न रात), द्वार की चौखट पर (न घर न बाहर), अपने नखों (न अस्त्र न शस्त्र) से हिरण्यकशिपु का वध किया।
इस दिन व्रत रखने वाले भक्त प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करते हैं और पवित्र संकल्प लेते हैं। व्रत में जल, फल, और दूध आदि से भगवान नृसिंह की पूजा की जाती है। भक्त स्तंभ की पूजा करते हैं, क्योंकि वहीं से नृसिंह भगवान प्रकट हुए थे।
व्रत विधि:
नृसिंह जयंती का पर्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है:
भय का अंत और साहस का संचार: प्रह्लाद जैसे बालक का हिरण्यकशिपु जैसे राक्षस के सामने निर्भय रहना मनोवैज्ञानिक दृढ़ता और आत्मविश्वास का प्रतीक है। यह बताता है कि सच्ची आस्था मन में डर को समाप्त करती है।
अत्याचार के विरुद्ध न्याय: नृसिंह अवतार हमें सिखाता है कि अत्याचार चाहे कितना भी बड़ा हो, धर्म की विजय निश्चित होती है।
ध्वनि और कंपन का सिद्धांत: माना जाता है कि "नृसिंह कवच" और विष्णु सहस्रनाम जैसे स्तोत्रों का नियमित उच्चारण शरीर में सकारात्मक कंपन उत्पन्न करता है, जिससे तनाव और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
आहार शुद्धि: व्रत के दौरान उपवास से पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है और शरीर में विषैले तत्त्व बाहर निकलते हैं।
नृसिंह जयंती का पर्व हमें यह शिक्षा देता है कि सत्य, श्रद्धा और भक्ति के सामने कोई भी शक्ति टिक नहीं सकती। भगवान नृसिंह के रूप में विष्णु ने सिद्ध कर दिया कि भक्त की रक्षा के लिए वे किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं। यह पर्व हर वर्ष हमें अन्याय के विरुद्ध खड़े होने और आत्मबल को जागृत करने की प्रेरणा देता है।