संकष्टी चतुर्थी व्रत 2025: संपूर्ण जानकारी, महत्त्व, पूजन विधि एवं विस्तृत व्रत कथा Upayogi Books
5 min read
संकष्टी चतुर्थी व्रत न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह आत्मिक शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम भी है। भगवान गणपति की कृपा से यह व्रत साधक को संकटों से उबारता है, जीवन को सकारात्मक दिशा देता है तथा शुभता एवं सौभाग्य की वृद्धि करता है।
May 16, 2025 14:36
संकष्टी चतुर्थी व्रत 2025: संपूर्ण जानकारी, महत्त्व, पूजन विधि एवं विस्तृत व्रत कथा
परिचय:
संकष्टी चतुर्थी, जिसे संकटहारा चतुर्थी भी कहा जाता है, भगवान श्रीगणेश को समर्पित एक परम पावन व्रत है, जो प्रत्येक हिन्दू चंद्रमास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। 'संकष्टी' शब्द का अर्थ है— संकटों का विनाश करने वाली। इस दिन भगवान गणेश की उपासना करने से जीवन के समस्त कष्ट, विघ्न एवं दोष नष्ट होते हैं।
व्रत का धार्मिक महत्त्व:
- भगवान गणपति को 'विघ्नहर्ता', 'संकटमोचक' और 'बुद्धिदाता' के रूप में पूजा जाता है।
- संकष्टी चतुर्थी पर उपवास और पूजन से व्यक्ति को मानसिक, दैहिक एवं सांसारिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
- विशेषतः अंगारकी संकष्टी चतुर्थी (मंगलवार को पड़ने वाली) का अत्यधिक महत्त्व होता है।
- शास्त्रों में वर्णित है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के ग्रह दोष, विशेष रूप से केतु दोष का शमन होता है।
व्रत विधि (पूजन प्रक्रिया):
प्रातःकाल की तैयारी:
- ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान को स्वच्छ करके गणेश प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
पूजन सामग्री:
- दूर्वा (21 गांठ), मोदक/लड्डू, सिंदूर, अक्षत, पंचामृत, घी का दीपक, धूप, फल, फूल, कलश।
पूजन विधि:
- सर्वप्रथम संकल्प लें कि “मैं संकष्टी चतुर्थी व्रत भगवान गणेश की कृपा प्राप्ति हेतु कर रहा/रही हूँ।”
- गणेशजी को जल, पंचामृत से स्नान कराकर वस्त्र अर्पण करें।
- दूर्वा, लाल फूल, मोदक, अक्षत, सिंदूर अर्पित करें।
- 'ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र का 108 बार जाप करें।
- व्रत कथा का श्रवण करें।
- रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित कर व्रत का पारण करें।
व्रत कथा (विस्तृत संस्करण):
पौराणिक कथा – "राजकुमार और दरिद्र ब्राह्मण"
प्राचीन काल में चम्पावती नगरी में एक राजा चंद्रसेन राज्य करता था। वह परम शिवभक्त था। एक दिन एक ब्राह्मण कुमार नामदेव उसके महल में गया और उसने राजा को शिवजी का ध्यान करते देखा। वह स्वयं भी वहाँ बैठ गया और ध्यान में लीन हो गया।
उसी समय एक दुष्ट राक्षस उस नगर पर आक्रमण करने आया। राजा की सेना पराजित होने लगी। राजा ने शिवजी से रक्षा की प्रार्थना की। तभी नामदेव के तप से प्रेरित होकर भगवान गणेश प्रकट हुए और उन्होंने राक्षस का वध कर दिया।
राजा ने नामदेव से पूछा— “हे ब्राह्मण! यह किस व्रत का फल है?” नामदेव ने कहा— “यह संकष्टी चतुर्थी व्रत का प्रताप है। इस व्रत को श्रद्धा एवं नियमपूर्वक करने से बड़े से बड़े संकट भी समाप्त हो जाते हैं।”
उस दिन से राजा चंद्रसेन, नामदेव और नगरवासियों ने संकष्टी चतुर्थी व्रत करना आरंभ कर दिया। कहते हैं, यह व्रत करने से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं और उसे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
व्रत के लाभ (शास्त्र सम्मत दृष्टि से):
लाभ का क्षेत्र |
लाभ का विवरण |
पारिवारिक जीवन |
शांति, समृद्धि, सौभाग्य |
मानसिक स्वास्थ्य |
चिंता, तनाव, भय से मुक्ति |
आर्थिक क्षेत्र |
व्यापार में वृद्धि, नौकरी में उन्नति |
आध्यात्मिक जीवन |
पापों का क्षय, शुभ संस्कारों का विकास |
ज्योतिषीय महत्त्व:
- यह व्रत केतु ग्रह के दोषों को शांत करता है।
- चंद्रमा को अर्घ्य देने से मन और मस्तिष्क को स्थिरता मिलती है।
- व्रत के दिन किए गए शुभ कार्यों का फल कई गुना बढ़ जाता है।
क्या करें और क्या न करें:
अनुकरणीय कार्य:
- दिनभर उपवास रखें।
- ग़लत विचार, क्रोध और अपवित्र आचरण से बचें।
- ब्राह्मण या निर्धन को भोजन कराएँ या दान दें।
वर्जित कार्य:
- बाल कटवाना, नाखून काटना वर्जित है।
- तामसिक भोजन, मद्यपान, मांसाहार पूर्णतया निषिद्ध है।
निष्कर्ष:
संकष्टी चतुर्थी व्रत न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह आत्मिक शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम भी है। भगवान गणपति की कृपा से यह व्रत साधक को संकटों से उबारता है, जीवन को सकारात्मक दिशा देता है तथा शुभता एवं सौभाग्य की वृद्धि करता है।