Sri Ramanujacharya Biography in Hindi | विशिष्ट द्वैत वेदांत के प्रवर्तक की जीवन गाथा"
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श्रीरामानुजाचार्य का जीवन परिचय: विशिष्ट द्वैत वेदांत दर्शन के प्रवर्तक, महान वैष्णव संत, और भक्ति मार्ग के अग्रदूत। जानिए उनके जन्म, शिक्षाएं, ग्रंथ और आध्यात्मिक योगदान की पूरी जानकारी
May 01, 2025 16:25
श्री रामानुजाचार्य: वैदिक भक्ति और विशिष्ट द्वैत वेदांत के महान आचार्य
भारत की पुण्यभूमि ने अनेक संत-महात्माओं को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने जीवन को धर्म, भक्ति और सेवा के मार्ग पर समर्पित कर लाखों लोगों को आध्यात्मिक दिशा दिखाई। इन्हीं महान संतों में एक नाम है श्री रामानुजाचार्य का, जो विशिष्ट द्वैत वेदांत दर्शन के संस्थापक और भक्ति आंदोलन के अग्रणी आचार्य थे।
श्रीरामानुजाचार्य का प्रारंभिक जीवन
श्रीरामानुजाचार्य का जन्म 1017 ईस्वी में तमिलनाडु के श्री पेरंबदूर नामक स्थान पर एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम केशव भट्ट था। बाल्यावस्था में ही उनके पिता का निधन हो गया, लेकिन रामानुज ने कठिन परिस्थितियों में भी शिक्षा का मार्ग नहीं छोड़ा। उन्होंने कांचीपुरम में यादव प्रकाश से वेद और शास्त्रों की गहन शिक्षा प्राप्त की।
आध्यात्मिक गुरु और उद्देश्य
रामानुजाचार्य ने अपने जीवन में श्री यामुनाचार्य को गुरु रूप में स्वीकार किया, जो अलवन्दार परंपरा के महान संत थे। गुरु की अंतिम इच्छा पूरी करने के संकल्प के रूप में रामानुजाचार्य ने ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम, और दिव्य प्रबंधम् पर भाष्य लेखन का संकल्प लिया। यह संकल्प उनके संपूर्ण जीवन का मार्गदर्शक बना।
ग्रंथ रचना और दार्शनिक योगदान
श्रीरामानुजाचार्य ने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में शामिल हैं:
- श्रीभाष्य – ब्रह्मसूत्रों पर आधारित उनका प्रसिद्ध भाष्य
- गीता भाष्य – भगवद्गीता का व्याख्यात्मक ग्रंथ
- वेदार्थ संग्रह – वेदांत का सार
- वैकुंठ गद्यम और श्रीरंग गद्यम – भक्ति से परिपूर्ण रचनाएं
- वेदांत दीप, नित्य ग्रंथम, वेदांत सार – अन्य दार्शनिक रचनाएं
उन्होंने वेदांत के अद्वैत और द्वैत मतों के बीच संतुलन बनाते हुए विशिष्ट द्वैत वेदांत दर्शन का प्रतिपादन किया। यह दर्शन ईश्वर, जीव और जगत को अलग लेकिन परस्पर संबंधित मानता है।
संन्यास और भक्ति प्रचार
17 वर्ष की आयु में विवाह के बाद श्रीरामानुजाचार्य ने गृहस्थ जीवन त्याग कर संन्यास ग्रहण किया और श्रीरंगम में आचार्य यदिराज से दीक्षा प्राप्त की। उन्होंने 12 वर्षों तक शालग्राम (मैसूर) क्षेत्र में रहकर वैष्णव धर्म का विस्तार किया और बाद में पूरे भारत में यात्रा कर भक्ति का संदेश फैलाया।
भक्ति की परिभाषा
रामानुजाचार्य के अनुसार, भक्ति केवल पूजा-पाठ या कीर्तन नहीं, बल्कि ईश्वर का ध्यान, स्मरण और प्रार्थना है। उन्होंने भक्ति को जीवन का अभिन्न अंग मानते हुए समाज में आध्यात्मिक चेतना का संचार किया।
श्रीरामानुजाचार्य का ब्रह्मलीन होना
श्रीरामानुजाचार्य ने 1137 ईस्वी में श्रीरंगम में ब्रह्मलीन होकर इस नश्वर शरीर का परित्याग किया, लेकिन उनके उपदेश, दर्शन और जीवन आदर्श आज भी जनमानस को प्रेरणा प्रदान करते हैं।
निष्कर्ष:
श्रीरामानुजाचार्य का जीवन भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का एक उज्ज्वल अध्याय है। उनका योगदान केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और दार्शनिक क्षेत्र में भी अमूल्य है। आज भी उनके सिद्धांत, विचार और उपदेश मानवता के कल्याण का मार्गदर्शन करते हैं।