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हिन्दी दशरुपक - [PDF] Dasarupaka Dhanika Bhola Shankar Vyas

हिन्दी दशरुपक - [PDF] Dasarupaka Dhanika Bhola Shankar Vyas Upayogi Books

by Chaukhamba Sanskrita Series
(0 Reviews) December 28, 2023
Guru parampara

Latest Version

Update
December 28, 2023
Writer/Publiser
Chaukhamba Sanskrita Series
Categories
Sanskrit Books Literature
Language
Hindi
File Size
72.3 MB
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1,008
License
Free
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हिन्दी दशरुपकम् - [PDF] Dasarupaka Dhanika Bhola Shankar Vyas

हिन्दी दशरुपकम् - [PDF] Dasarupaka Dhanika Bhola Shankar Vyas

संस्कृत नाटक-उत्पत्ति व विकास

मानव में स्वभाव से ही अनुकरण वृत्ति पाई जाती है। छोटे बच्चों की अविकसित चेतना में भी इसका बीज रूप देखा जाता है। मानव ही नहीं कई पशुओं में भी, विशेषतः बन्दरों में हम इस अनुकरणवृत्ति को मजे से देख सकते हैं। लन्दन के म्यूजियम के चिम्पेजीज हमारी तरह कुर्सी टेबिल पर बैठ कर प्याले तरतरी से चाय पीते हैं, और कभी कभी तो कोई विम्पेजीज मुलगी हुई सिगरेट को देने पर अभ्यस्त ब्यक्ति की तरह धूर्षपान भी करता हुवा देखा जा सकता है। बैसे मैं डार्बिन के विकासवाद का उस हद तक कायल नहीं, जितना कि लोग उसके सिद्धान्त के रयक्ष को खींच कर बढ़ाते नजर आते हैं, पर इस विषय में मेरी धारणा आधुनिक जीवशात्रियों तथा मनःशास्त्रियों से मिलती है, कि चेतना की अविकसित स्थिति में भी हम अनुकरण- वृत्ति के चिह पा सकते हैं। मैं इस भूमिका को लिखने में व्यस्त हैं, पीछे मेरी छोटी बच्ची जिसकी अपस्या देढ वर्ष से भी कम ही है, मेरे चप्पलों को दोनों पैरों में पहनने की चेष्टा कर रही है। यही नहीं, मुझे रेडियों के बोस्यूम कन्ट्रोलर को घुमाते देखकर, यह भी बोल्यूम कन्ट्रोलर घुमाना चाहती है, यदि कभी कभी उसकी इस चेष्टा में बाधा उपस्थित की जाती है, तो यह रुदन के द्वारा उसकी प्रतिविया करती है। नथी ही नहीं वर्षों में भी दूसरे लोगों की चाल-चाल, रहन-सहन, बोलने का दङ्ग आदि का व्यंग्यात्मक अनुकरण देखा जाता है। यह क्यों?


अनुकरण वृत्ति का एकमात्र लक्ष्य आनन्द प्राप्त करना, मन का रक्षन करना ही माना जा सकता है। अज्ञात रूप से मेरी छोटी बच्ची भी हमारी क्रिया-प्रकियाओं का, व्यवहार का, अनुकरण कर, अपनी मनस्तुष्टि ही सम्पादित किया करती है। हमारे नगयुवक, किन्हीं बो-पूष्टों की हरकतों की नकल कर अपने दिल को बहलाया करते है। दिल बहलाना ही इसका एकमात्र कारण है। दिल बहलाने वाली वस्तु में हमें एकाग्रचित्त करने की क्षमता होती है, और कुछ क्षण तक यह हमें केरल मनोराज्य में ही विचरण कराती है। उस विषय के अतिरिक्त दूसरे विषयों से जैसे हम कुछ क्ष्णों के लिए अलग से हो जाते हैं। यहाँ मैं साधारण 'मनोरञ्जन' की बात कह रहा हूँ. काव्य के रसास्वाद को हम शत प्रतिशत रूप में इस कोटि का नहीं मान सकते क्योंकि उसमें 'दिल बहलाने के अलावा' कुछ 'और' भी है, और यह कुछ और उसमें कम महत्त्वपूर्ण नहीं ।

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