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हितोपदेश पिडीएफ - Hitopadesha (with Hindi Translation) [PDF]]

हितोपदेश पिडीएफ - Hitopadesha (with Hindi Translation) [PDF]]

by Chaukhamba Surbharati Prakashan
(0 Reviews) December 27, 2023
Guru parampara

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December 27, 2023
Writer/Publiser
Chaukhamba Surbharati Prakashan
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Sanskrit Books
Language
Hindi Sanskrit
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हितोपदेश पिडीएफ - Hitopadesha (with Hindi Translation) [PDF]

हितोपदेश पिडीएफ - Hitopadesha (with Hindi Translation) [PDF]


विदित हो कि नीति एक ऐसा शान है कि जिसको मनुष्यमात्र व्यवहार में लाता है, क्योंकि बिना इसके संसार में सुखपूर्वक निर्वाह नहीं हो सकता, और यदि नीति का अवलम्बन न किया जाय तो मनुष्य को सांसारिक अनेक घटनाओं के अनुकूल कृतकार्य होने में बड़ी कठिनता पड़े, और जो लोग नीति के जानने वाले हैं वे बड़े बड़े दुस्तर और कठिन कायों को सहज में शीघ्र कर लेते हैं; परन्तु नीतिहीन मनुष्य छोटे छोटे से कार्यों में भी मुग्ध हो कर हानि उठाते हैं।

नीति दो प्रकारकी है- एक धर्म, दूसरी राजनीति; और इन दोनों नीतियों के लिये भारतवर्ष प्राचीन समय से सुप्रसिद्ध है । सर्वसाधारण को राजनीति से प्रतिदिन काम पड़ता है। अत एव विदेशी विद्वानों ने भारत में आ कर नीतिविद्या सीख ली और अपने देशों में जा कर उसका अनुकरण किया और अपनी अपनी मातृ- भाषा में उसका अनुवाद कर के देश को लाभ पहुंचाया ।।

यद्यपि राजनीति के एक से एक अपूर्व ग्रंथ संस्कृत भाषा में पाये जाते हैं तथापि पण्डित विष्णुशर्मारचित पञ्चतन्त्र परम प्रसिद्ध है, क्योंकि उस ग्रंथ में नीतिकथा इस उत्तम प्रणाली से लिखी गई है कि जिसके पढ़ने में रुचि और समझने में सुगमता होती है और अन्य देशियों ने भी इसका बड़ा ही समादर किया कि अरबी, फारसी इत्यादि भाषाओं में इसका अनुवाद पाया जाता है।

पण्डित नारा-यणजी ने उक्त पञ्चतन्त्र तथा अन्य अन्य नीति के ग्रन्थों से हितोपदेश नामक एक नवीन ग्रन्थ संगृहीत करके प्रकाशित किया, कि जो पञ्चतन्त्र की अपेक्षा अत्यन्त सरल और सुगम है और विद्वानोंने हितोपदेश को "यथा नाम तथा गुणाः" समझ कर अत्यन्त आदर दिया, यहां तक कि वर्तमान काल में भारतवर्षीय शिक्षा विभाग में इसका अधिक प्रचार हो रहा है.

हितोपदेश के गुणवर्णन करने की कोई आवश्यकता नहीं है कारण उसका गौरव सब पर विदित ही है और उक्त ग्रन्थ पर कई टीकाएँ प्रकाशित होने पर भी निर्णयसागर यंत्रालय के मालिक श्रीयुत तुकाराम जावजी महाशय ने मुझ से 'यह अनुरोध किया कि, हितोपदेश की भाषाटीका इस रीति पर की जाय कि जिससे पाठकों की समझ में विभक्त्यर्थ के साथ आशय भली भांति था जाय, अत एव मैं अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार उसी रीति पर टीका करके पाठकगण को समर्पण करता हूं और विद्वानों से प्रार्थना करता हूं कि जहां कहीं भ्रम से कुछ रह गया हो उसे सुधार लेनेकी कृपाकरें.

मार्ग. शु. ३ सृगौ { रामेश्वर भट्ट, संवत् १९५१. । प्रथम संस्कृताध्यापक. मु. आ. स्कू. आगरा.


हितोपदेशः भाषानुवादसमलंकृतः

सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः । जाह्रवीफेनलेखेव यन्मूर्ध्नि शशिनः कला ॥ १॥

जिन्होंके ललाटपर चन्द्रमाकी कला गंगाजी के फेनकी रेखाके समान शोभाय- मान है उन चन्द्रशेखर महादेवजीकी कृपासे साधुजनोंका मनोरथ सिद्ध होय ॥ १ ॥

श्रुतो हितोपदेशोऽयं पाटवं संस्कृतोक्तिषु । वाचां सर्वत्र वैचित्र्यं नीतिविद्यां ददाति च ॥ २ ॥

यह हितोपदेश नामक ग्रंथ सुना हुआ (सुननेसे) संस्कृतके बोलने-चालनेमें चतुरताको, सब विषयोंमें वाक्योंकी विचित्रताको और नीतिबिद्याको देता है॥२॥

अजरामरवत् प्राक्षो विद्यामर्थ च चिन्तयेत् । गृहीत इव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत् ॥ ३ ॥

बुद्धिमान् मनुष्य अपनेको कभी बूदा न होऊंगा और कभी न मरूँगा ऐसा जानकर विद्या और धनसंचय का विचार करे, मृत्युने चोटीको आ पकड़ा है ऐसा सोच कर धर्म करे ॥ ३ ॥

सर्वद्रव्येषु विचैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम् । अहार्यत्वादनर्घत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा ॥ ४ ॥

पण्डित लोग सब कालमें (कभी) चौरादिकोंसे नहीं चुराये जानेसे, अनमोल होनेसे और कभी क्षय न होनेसे, सब पदाथार्मेसे उत्तम पदार्थ विद्याको ही कहते हैं ।॥ ४ ॥

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