भूमिका |
चारों वर्ण और चारों आश्रमोंके आचार, विचार तथा सम्पूर्ण लोकव्यवहार, दायभाग, संस्कार, व्रता- नुष्ठान, महीनोंके उत्सव, संक्रान्तिविधान, व्रतादिके निर्णय, दानादिका समय और फल, ग्रहण समयकै कृत्य पापोंके प्रायश्चित्त, यह सब भिन्न २ स्थलोंमें धर्मशास्त्र और पुराणांमें वर्णन किये हैं, एवं एक ही धर्म शास्त्र वा पुराणमें सब विषयकी पूर्ति नहीं पाई जाती।
एकके साथ दूसरेकी अपेक्षा लगी रहती है, और कभी २ व्रत तथा उत्सवोंके निर्णय में बडी झंझट पडती है इन भावोंके दूर करनेके लिये महानुभावाने सम्पूर्ण धर्म- शास्त्र तथा पुराणोंका सारसंग्रह करके बडे २ निबन्धोंकी रचना की है, उनमें कृत्यकल्पतरु और हेमाद्रि आदि बढे २ निबन्ध हैं, परन्तु यह इतने बृहत् होगये हैं कि, न तो सर्वसाधारणको उनकी उपलब्धिही हो सक्ती है और न बिना पूर्ण विद्वत्ताके उनको कोई समझ सकता है।
उन निबन्धोंका बृहदाकार देखकर ही प्रसिद्ध स्मृतिशास्त्रज्ञाता कमलाकरभट्टने इन बृहत् निबन्धों तथा धर्मशास्त्र पुराणोंका सार संग्रह करके प्रयोजनीय समस्त विषयों से पूर्ण “निर्णयसिन्धु” नामक ग्रंथकी रचना की।
इसमें इन पंडितवर्यका पांडित्यभी पूर्णरूपसे झलक- ताहै परन्तु साधारण मनुष्योंको इसका अर्थभी सुलभ नहीं है, इन्होंने जहाँ तहाँ अपने ग्रन्थमें गौडमन्तव्यों- का खण्डन कियाहै इससे विादित होता है कि, यह गौडनिबन्धोंके सर्वथा सहमत न थे, अस्तु तोभी यह ग्रन्थ धर्मनिबन्धोंमें बहुत उत्कृष्ट समझा जाता है, इसकी रचनाभी न्यायमीमांसासे गर्भित है, और कहीं कहीं इसकी पंक्तियें कठिनता लिये हुए हैं।
धर्मसिंधु नामक एक वार्तिक संस्कृत ग्रंथ इसका टीकारूप समझा जाता है, परन्तु वहभी सर्व साधारणके उपयोगी नहीं समझा जाता इसकारण यह आवश्यकता हुई कि सम्पूर्ण वर्णाश्रमोंक्के प्रयोजनीय धर्मकर्मके साररूप इस ग्रंथका हिन्दी भाषामें सबके समझने योग्य टीकाका निर्माण किया जाय यद्यपि यह कार्य दीर्घकाल साध्य और विशेष परिश्रम सापेक्ष था तोभी सर्व साधारण के उपकार विचार कर इसके टीका करनेका परिश्रम कुछ विशेष न समझा ।
इसका सरल सुगम सबके समझने योग्य ऐसा अनुवाद लिखा है कि इसकी कठिन पंक्तिभी भलीप्रकार सर्वसाधारणकी समझमें आसकेंगी, और कर्म काण्डमें जो कहीं कहीं वैदिक मंत्रोंकी प्रतीके इसके मूलमें थी मैंने नोटमें यह पूरे मंत्र पतेसहित लिखदिये और इसकी रचनाको अंकोंमें विभक्तकर अंक डालकर नीचे उसका तिलक लिखा है जिससे समझने में किसी- प्रकार भी कठिनाई न पढ़े इस मकार इसग्रंथके भाषानुवाद होनेसे हिन्दीभाषा के भंडार में एक अनुपम ग्रंथकी वृद्धि हुई है ।
यथामति इस ग्रंथके अलंकृत करनेकी चेष्टा कीगई है यदि कहीं कुछ भ्रम रहगया हो तो पाठकगण क्षमा करेंगे।
इस प्रकार यह ग्रंथ सब सत्वसहित जगद्विख्यात " श्रीवेङ्कटेश्वर" (स्टीम) यंत्रालयाध्यक्ष सेठजी श्रीयुत खेमराज श्रीकृष्णदासजी महोदयको समर्पण कर दिया गया है, आशा है कि, महात्माजन इसके अवलोकनसे प्रसन्न होंगे ।