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सुभाषितावलि: बल्लभदेव विरचित - subhashitavali PDF

सुभाषितावलि: बल्लभदेव विरचित - subhashitavali PDF Upayogi Books

by Ballabhadev
(0 Reviews) September 20, 2023
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September 20, 2023
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रमणीयता अमूर्त पदार्थ है किन्तु उसके प्रत्यक्ष के माध्यम मूर्त पदार्थ होते हैं । जड प्रकृति और चेतन दोनों ही नियमनको सृष्टि में मन रमणीय पदार्थ है सहयम की दृष्टि में का पूर्व रमणीयता से होता है

सुभाषितावलि: बल्लभदेव विरचित - subhashitavali PDF

प्रामुखम्

रमणीयता अमूर्त पदार्थ है किन्तु उसके प्रत्यक्ष के माध्यम मूर्त पदार्थ होते हैं । जड प्रकृति और चेतन दोनों ही नियमनको सृष्टि में मन रमणीय पदार्थ है सहयम की दृष्टि में का पूर्व रमणीयता से होता है। मनुष्य के लिए संभव नहीं है कि यह कि रमणीयता कालोम-विलोकन करके पताको परिभाषा करते हुए परिवार के प्रारम्भ में कहा है--

वानिविशेषः । सर्वसामान्य को नहीं किन्तु सदय द्वारा सामान्य माना की ही रमाका साथम प्रस्तुत करती है। महाकवि मापने मीयता का बाहुए कहा है- मुर्मुरारे पूर्ववद्विस्मयमाढतान । लदेव रूपं रमणीयतायाः च च मन्नयतामुपैति ।


भुकमनीय कृष्ण पक्ष की सुषमा का प्रत्यक्ष कई वार कर चुके थे फिर भी पदों से मिलने इन्द्रप्रस्थ गाते हुए को यह पर्यंत अपूर्ण विस्मयजनक हुआ। चाशुन्धरा में परिवर्तित नवीन नवीन रूप की धारण क्षमता ही रमणी का रूप है कवि सुमियानन्दन पन्त ने भी एसएसपरिवति प्रतिवेश" की भतार की है। रामलीला में रमाना पशु और मनुष्य दोनों के लिए सहन है किन्तु मनुष्य की विशेषता है किसी रमणीय दृश्य और कोि सकर उसे स्यायिता प्रदान करने में समर्थ होता है यतः देश काल यादि की परिधि से किसी भी सहृदय की सरस रचना जम के लिए शाम्यत दुखणी रही हैं। सत्य शिव और केस सम्मिश्रण में पूर्व कारवाद का अनुभव होता है। यहाँ उनका प्रवाह प्रय व्यका रूप पहरा करता है ही उसका यह मधुविन्दूको प्रवाह मुक्त होकर भी हो की तरह देदीप्यमान और मूल्यवान् बन जाता है, सुभाषित की भैसी में स्थान पाता है। सुभाषित वह मुचक रचना है जिसे क्रमिक प्रसङ्ग की वसा नहीं होती, यह अनाकाच और स्वयं में पूर्ण होता है। बषा कोई साधारण मान और मेरा होते है उसमें प्रस्फुटित शास्वत सर और साधारण की सुखदुभय अनुभूति से अमर बना देती हैं संचित रूप से मुसक पीड़ा कामन्य और शाम दृश्यकासावीस्रोत होता है।


तो से निकले रसगर की मति महाकवियों के काव्य से होकर जन जन कहार और गुरु कवि की मुख्य रूप में एकसी को भांति सुशोभित होते है। मस्क भर्तृहरि, भन्ट पीयूष जयदेव और परिडरान जमाव एवं राजशेखर आदि के सूचक इसी के है। अमरुकशतक का वो एक एक माध्यम के साथ महाकाव्य को पूर्णता का सार्थ कर लेता है समय कवि के विषय में कहा गया- #


मुक्तक के उपर्युक्त उम्मानों के में ध्वन्यालोक में धानन्दवर्धनाचार्य ने लिखा है---


"वत्र गुमिनिवेशिनः फलैस्तदः श्रयमौचित्य सन्धामिनिवेशिम क दृश्यन्ते । यथा मय कः शृङ्गाररस्यन्दिनबस्थामा प्रसिद्धा एव" | इसपर टीकाकार अभिनयपापा ने लिखा है-

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