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उज्ज्वल नीलमणि श्रील रूप गोस्वामी - Ujjwala Nilamani [PDF]

उज्ज्वल नीलमणि श्रील रूप गोस्वामी - Ujjwala Nilamani [PDF] Upayogi Books

by Shrila Rupa Goswami
(0 Reviews) November 10, 2023
Guru parampara

Latest Version

Update
November 10, 2023
Writer/Publiser
Shrila Rupa Goswami
Categories
Sanskrit Books
Language
Hindi Sanskrit
File Size
2.3 MB
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1,017
License
Free
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श्रीलरूपगोस्वामिना प्रणीतः उज्ज्वलनीलमणिः श्रीलजीव गोस्वामिकृतया लोचनरोचनीनाम्या तथा श्रील विश्वनाथचक्रवर्तिकृतया आनन्दचन्द्रिकानाम्या टीकया च सहितः श्रीगौड़ीय वेदान्त समितेः प्रतिष्ठापकवराणां नित्यलीलाप्रविष्ट - ॐ - विष्णुपाद - परमहंस स्वामिनां श्रीमद्भक्तिप्रज्ञान- केशव - गोस्वामि- महाराजानां पादत्राणावलम्बकेन परिव्राजकाचार्येण (त्रिदण्डस्वामिना) श्रीमद्भक्तिवेदान्त-नारायण- गोस्वामि-महाराजेन अनूदितः सम्पादितश्च

उज्ज्वल नीलमणि श्रील रूप गोस्वामी - Ujjwala Nilamani [PDF]

मुख्यरसेषु पुरा यः संक्षेपेणोदितोऽति रहस्यत्वात् ।
पृथगेव भक्तिरसराट् स विस्तरेणोच्यते मधुरः ॥ २ ॥

तात्पर्यानुवाद- शान्त, दास्य, सख्य, वात्सल्य और मधुर ये पाँच मुख्य रस हैं। इन पाँचों रसोंमें भी मधुररस ही सर्वश्रेष्ठ है। ग्रन्थकार श्रीरूपगोस्वामीपादने अपने पूर्ववर्णित भक्तिरसामृतसिन्धु ग्रन्थमें प्रथम चार रसोंका साङ्गोपाङ्ग विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। किन्तु भक्तिरसराज मधुररसका वर्णन अत्यन्त संक्षेपसे किया है। इसके तीन कारण हैं-

(१) मधुर रसाश्रयी भक्त व्यतीत शान्त आदि दूसरे रसाअयी भक्तोंके लिए यह अनुपयोगी है,

(२) मधुररसके भक्त बहुत हो सकते हैं, परन्तु उनमेंसे बहुत इस रसके संस्कारसे रहित हैं, इसलिए इसके रसास्वादनमें अपटु हैं, उनके लिए यह रस अत्यन्त दुरूह या दुस्तर्य है और

(३) रागमार्गका वर्णन ही इस ग्रन्थका प्रधान विषय है। इसके अतिरिक्त अगणित प्रकारके अवान्तर स्वभाववाले व्यक्ति हैं। ऐसे विविध प्रकारके वासनावद्ध व्यक्तियोंके लिए भी परमोच्च रागमार्गका रहस्य अपरिचित रहनेके कारण उनका चित्त वैधीमार्गमें ही विशेष रूपसे आविष्ट रहता है ऐसे लोगोंके समीप यह मधुररस प्रकाश करनेके लिए सर्वथा अयोग्य है। ये लोग इस रसके लिए अनधिकारी हैं। इसीलिए इस ग्रन्थमें अत्यन्त गोपनीय मधुररसका पृथकरूपमें विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।

मूल तात्पर्य यह है कि भक्तिरसामृतसिन्धु ग्रन्थ विभिन्न जातीय भक्तोंके लिए अनुशीलनीय है अतः उसमें मधुर रसका अत्यन्त संक्षिप्त रूपमें परिचयमात्र दिया गया है परन्तु इस ग्रन्थमें रागमार्गमें संसक्तपित्त और विशेष रूपसे पटु मधुररसके भक्तोंके लिए ही आस्वादनोपयोगी रूपमें उस मधुररसका विस्तारपूर्वक वर्णन किया जा रहा है ।।२॥

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