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वेदान्त सार - Vedantasara PDF by डाँ आद्याप्रसाद मिश्रा

वेदान्त सार - Vedantasara PDF by डाँ आद्याप्रसाद मिश्रा Upayogi Books

by Dr. Aadyaprasad Mishra
(0 Reviews) February 23, 2023
Guru parampara

Latest Version

Update
February 23, 2023
Writer/Publiser
Dr. Aadyaprasad Mishra
Categories
Sanskrit Books
Language
Hindi Sanskrit
File Size
35.5 MB
Downloads
47
License
Free
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'समासो बुद्धिलक्षणम्' अर्थात् अपनी बात को संक्षेप में कह देना या रख देना बुद्धिमत्ता का लक्षण है। जहाँ अल्पबुद्धि पुरुष अपनी सामान्य-सी भी बात को ढेर-कुछ कहकर स्पष्ट कर पाते हैं, वहाँ प्रज्ञावान् पुरुष अपनी बड़ी बात को भी थोड़े ही शब्दों में स्पष्ट कर देते हैं। संस्कृतभाषा-भाषियों में संक्षिप्त कथन की यह प्रवृत्ति विशेष रूप से देखने को मिलती है। शास्त्रग्रन्थों के लेखकों में तो यह प्रवृत्ति पराकाष्ठा पर पहुँची हुई देखी जाती है।

 न्याय, वेदान्त आदि दर्शन-शास्त्रों में प्रतिपाद्य विषय की सूक्ष्मता एवं गहनता ग्रन्थकारों की इस प्रवृत्ति के कारण उन्हें बहुत अधिक दुर्बोध गहनतर बना देती है। इसी से इन शास्त्रों के ग्रन्थ हिन्दी या अंग्रेजी में किये गये शाब्दिक अनुवाद मात्र से सुबोध एवं ग्राह्य नहीं हो पाते। एतदर्थ तत्प्रतिपादित विषयों या सिद्धान्तों की व्याख्या भी अपेक्षित होती है। किन्तु संस्कृत काव्यों के सुप्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ की 'नामूलं लिख्यते किञ्चित्' प्रतिज्ञा को आदर्श मानकर किये गये अनुवाद से मूल ग्रन्थकार के मन्तव्य या प्रतिपाद्य का जितना सही आकलन हो जाता है, उतना अन्यथा नहीं हो पाता। इसीलिये दर्शनशास्त्रों के ग्रन्थों को सुबोध बनाने के लिये अनुवाद एवं व्याख्या- दोनों ही समान रूप से अपेक्षित होते हैं।


परिव्राजक सदानन्द का वेदान्तसार अद्वैत वेदान्त के प्रमुख सिद्धान्तों को संक्षेप में जानने-समझने के लिए महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। शायद ही किसी अन्य ग्रन्थकार की कोई कृति इस विषय में इसकी बराबरी कर सके। इसी कारण से यह अद्वैत वेदान्त के जिज्ञासुओं के बीच सर्वाधिक प्रिय एवं प्रचलित पुस्तक है और इसी कारण से इसके अनेक संस्करण अँग्रेजी और हिन्दी अनुवाद एवं टिप्पणी इत्यादि के साथ हो चुके हैं। इनका विवरण आगे दिया गया है।


वेदान्तसार का, नृसिंहसरस्वती कृत 'यथा नाम तथा गुणः' को चरितार्थ करने वाली संस्कृत टीका सुबोधिनी, प्रशस्त भूमिका, सटीक हिन्दी अनुवाद एवं विशद टिप्पणी के साथ प्रकाशित, प्रस्तुत संस्करण अपनी कई विशेषताओं के कारण इसके अध्येताओं में विशेष प्रिय होगा, ऐसा दृढ़ विश्वास है। सटीक अनुवाद से ही मूल का अर्थ पर्याप्त रूप से सुबोध बन गया है। तथापि 'वेदान्तो नाम उपनिषत्प्रमाणम्', 'ब्रह्मवित्त्वं तथा मुक्त्वा स आत्मज्ञो न चेतर:', 'एतेषां नित्यादीनां बुद्धिशुद्धिः परं प्रयोजनमुपासनानां तु चित्तैकाग्र्यम्... नित्यनैमित्तिकप्रायश्चित्तयोपासनानां त्ववान्तरफलं पितृलोकसत्यलोकप्राप्तिः' जैसे सूक्ष्म विषयों को सुस्पष्ट करने वाले विशेषों के द्वारा खोलने का पूर्ण प्रयास किया गया है। इसकी भूमिका भी अद्वैत वेदान्त से सम्बद्ध अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का उद्घाटन करने वाली है।


आशा है, वेदान्तसार का प्रस्तुत संस्करण अध्येताओं में विशेष लोकप्रिय होगा ।

आद्याप्रसाद मिश्र

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