पं० श्री सीताराम झा
प्र० अध्यापक संन्यासी संस्कृत कालेज, बनारस । ज्यौतिष शास्त्र में काल की ही विश्वोत्पत्ति स्थिति प्रलय कारक परमेश्वर कहा गया है, क्योंकि श्रुति और पुराण में परमेश्वर का जो लक्षण कहा गया है वह पूर्ण रूप से काल ही में घटता है, काल निराकार होता हुआ भी साकार है, निर्गुण होते हुए भी सगुण है। साकार, सगुण काल को ही समय कहते हैं। जिस काल में जैसा गुण रहता है, वह उसी प्रकार के गुणों से युक्त जन्तुओं का उत्पादन करता है। अतः यदि मनुष्य को किसी के जन्म समय का ठीक ज्ञान हो जाय तथा उसके गुणों (प्रकृति) का ज्ञान हो जाय तो उस मनुष्य के गुण (प्रकृति) को भी समझ सकता है।
हमारे भारतीय महर्षियों (ज्यौतिष शास्त्र प्रवर्तकों) ने आकाशस्थग्रह नक्षत्रों के आधार पर काल के समान गुणों का ज्ञान किया जो कालतन्त्र तथा (आकाशस्थ ज्यौतिष्पिण्ड के आधार से ज्ञान होने के कारण) ज्यौतिष शास्त्र कहलाता है।
इसलिये जन्म समय का जितना ही सूक्ष्म समय और ग्रह नक्षत्रों का जितनी ही सूक्ष्मता का ज्ञान होगा, उतनी ही उस मनुष्य की जीवन घटना का सूक्ष्म ज्ञान हो सकता है। इसीलिये कहा भी है-
यन्त्रैः स्पष्टतरोऽत्र जन्मसमयो वेद्योऽथ खेटा: स्फुटाः ।।
पूर्व समय में ऐसा ही किया जाता था, जिससे मनुष्य को अपने जीवन की समस्त घटना ज्ञात हो जाती थी, तथा ज्यौतिष शास्त्र की प्रतिष्ठा विश्व में व्याप्त थी।
किन्तु सम्प्रति ज्यौतिषी लोग उस प्रकार स्पष्ट समय या ग्रह को नहीं जान कर अत्यन्त स्थूल समय और ग्रह के द्वारा जन्मपत्र बनाकर फलादेश करते हैं जो १० प्रतिशत भी सत्य नहीं होता है।