मंगलाचरण
गौरीश्रवः केतकपत्र भङ्गमाकृष्य हस्तेन ववन्मुखाने । विघ्नं मुहूर्त्ताकलित द्वितीयदन्तप्ररोहो हरतु द्विपास्यः ॥ १ ॥
अन्वयः - गौरीश्रवः केतकपतभंगं हस्तेन आकृष्य मुखाग्रे ददत् ( अतएव) मुहूर्ता कलितद्वितीयदन्तप्ररोहो द्विपास्य: (अस्माकं ) विघ्नं हरतु ॥ १ ॥ श्रीपार्वतीजी के कान में स्थित केतकी के फूल के दल को सूंड से लेकर ओष्ठ पर भरते समय मुहूर्तभर दूसरे दांत के सदृश करने वाले श्रीगणेशजी हमारे विघ्न को हरें ॥ १ ॥
क्रियाकलापप्रतिपत्तिहेतुं संक्षिप्तसारार्थविलासगर्भम् ।
अनन्तदेवज्ञसुतः स रामो मुहूर्तचिन्तामणिमातनोति ॥ २ ॥
अन्वयः - अनन्तदैवज्ञसुतः स रामः क्रियाकलापप्रतिपत्तिहेतुं संक्षिप्तसारार्थं विलासगर्भ- मुहूर्तचिन्तामणि आतनोति ।। २ ।।
अनन्त दैवज्ञ के पुत्र राम मुहूर्तचिन्तामणि नाम ग्रन्थ की रचना करते हैं । यह ग्रन्थ जातकर्म आदि अनेक कर्मों के करने वा न करने योग्य शुभाशुभ मुहूर्त्त के जानने का कारण है और इसमें थोड़े शब्दों में मुख्य अर्थ प्रकट किये गये हैं। मुहूर्त्तचिन्तामणि के दो अर्थ हैं। पहिला यह कि दिन और रात्रि के पन्द्रहवें भाग को और किसी कार्य को करने के लिए विचारे हुए शुभाशुभ काल को मुहूर्त कहते हैं। उसके शुभाशुभत्व के विचारने के लिए जितने ग्रन्थ हैं उन सबों में श्रेष्ठ। दूसरा अर्थ यह है कि वाञ्छित फल देनेवाले मणि के सदृश बान्छित मुत्तों का ज्ञान करानेवाला ग्रन्थ ॥ २ ॥
तिथीशा वह्निको गौरी गणेशोऽहिर्गुहो रविः । शिवो दुर्गान्तको विश्वे हरिः कामः शिवः शशी ॥ ३ ॥
अन्वयः - वह्निः कः, गौरी, गणेश, अहिः, गुहः, रविः शिवः, दुर्गा, अन्तकः, विश्वे, हरिः, काम:, शिवः, शशी, (एते) तिथीशाः (ज्ञेयाः) ॥ ३ ॥
अग्नि, ब्रह्मा, पार्वती, गणेश, सर्प, कात्तिकेय, सूर्य, शिव, दुर्गा, यम विश्वेदेव, हरि, कामदेव, शिव और चन्द्रमा ये देवता क्रम से प्रतिपदादि पन्द्रह तिथियों के स्वामी हैं, अर्थात् प्रतिपदा के अग्नि, द्वितीया के ब्रह्मा, तृतीया के पार्वती, चतुर्थी के गणेश, पंचमी के सर्प, षष्ठी के कार्तिकेय, सप्तमी के सूर्य, अष्टमी के शिव, नवमी के दुर्गा, दशमी के यम एकादशी के विश्वेदेव द्वादशी के हरि त्रयोदशी के कामदेव, चतुर्दशी के शिव पूर्णमासी के चन्द्रमा और अमावस के पितर स्वामी हैं। जिन तिथियों जो स्वामी हैं. उन देवताओं की पूजा वा प्रतिष्ठा आदि उन्हीं तिथिय करने से शुभदायक होते हैं ।। ३ ।।