ज्योतिष- साहित्य अत्यन्त समृद्ध है। इस विद्या की समृद्धि के प्रतीक अनेक ग्रन्थ अभी तक हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के रूप में विभिन्न पुस्तकालयों में सुरक्षित हैं, जिनका सम्पादन तथा प्रकाशन विजनों का परम कर्तव्य है। ज्योतिष वाङ्मय को प्रायः दो भागों में विभक्त करके गणित और फलित की चर्चा की जाती है। गणित के द्वारा जो तय ज्योतिष में उद्घाटित होते हैं, प्रायः उनमें तूष्णीभाव ही रहता है। यही तथ्य फलित के द्वारा प्रकाशित होकर चमत्कार का विषय बनते हैं। बह्यषि शुकदेव द्वारा विरचित 'शुरुजातकम्' भी एक फलित ग्रन्थ है, जिसका प्रकाशन अभी तक नहीं हुआ है। 'शुरुजातकम्' के फल प्राय: अनुभव के आधार पर सत्य पाये गये हैं। ग्रहादिकों के बलाबल के विचार में यह ग्रन्थ अत्युपादेय है।
'शुक्र' नाम से कई अन्य प्रत्यों का ज्योतिय-साहित्य में उस्ले जाता है, जैसे 'शुकमाडी' या 'शुक्रनाडी' ('भार्गवनादिका')। किन्तु 'शुक' नाम से केवल यही ग्रन्थ दृष्टिगोचर होता है। अखिल भारतीय संस्कृत-परिषद् लखनऊ में उपलब्ध दो हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के द्वारा इस 'शुरुजातक' नामक ग्रन्थ का सम्पादन कार्य सम्पन्न किया गया है। इसके अतिरिक्त उपयोगिता को देखते हुए 'कला' नामक हिन्दी टीका भी सम्पादक के द्वारा सम्पन्न को गयी है। 'चन्द्रकला' हिन्दी टीका में 'शुकजातकम्' से सम्बद्ध तथा भिन्न विचार 'बृहज्जा तक', 'भट्टोत्पल कृत बृहज्जातक टीका,' 'सारावली' तथा 'बृहत्पाराशरहोरा- शास्त्रम्' से वचन प्रमाणार्थ उद्धृत किये हैं। टीका के अन्तर्गत विशिष्ट अपेक्षित वियों को चक्रों के द्वारा समझाया गया है तथा विषय से सम्बद्ध अनेक 'बोधक- चक्र' को यथास्थान उल्लेख किया गया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन तथा टीका लेखन में जिन महानुभावों का सहयोग प्राप्त हुआ है, उनके प्रति हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन करना सम्पादक का पावन कर्तव्य है। सर्वप्रथम आचार्यश्वर श्री उपेन्द्रनारायणाचारी, ग्राम-तिवारीपुरबा, जिला-बाराबी का हृदय से स्वबन तथा चडावनत चरणस्पर्श करता हूँ, जिन्होंने मुझे ज्योतिष तथा तन्त्र को गोपनीय निधि प्रदान की। यद्यपि वे आज हमारे मध्य नहीं है, तथापि उनके ज्ञान और दुष्य को असंख्य फिरणें आज भी मुझे आलोकित कर रही हैं। अतः उनके प्रति हार्दिक श्रद्धा व्यक्त करना मेरा पुनीत कर्तव्य है। डॉ० अशिक कुमार कालिया डर, संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ ने 'शुरुजातकम्' के पाठालोचनपूर्वक सम्पादित मूल-भाग को अपनी पत्रिका अजला में प्रकाशित किया है। अतः गुरुवरश्री कालिया के प्रति सावरला शापित करते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता है। डॉ० बी० के० पी० एन० सिंह, निदेशक एकडेमिक स्टाफ कालेज लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ की कृपादृष्टि सदैव मुझे प्राप्त होती रही है, अतः उनके प्रति में हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। डॉ० उमेशप्रसाद रस्तोगीजी, अध्यक्ष संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ के प्रति सावर कृतजता ज्ञापन मेरा कर्तव्य है, जिनका स्नेह मुझे सर्वय प्राप्त होता रहता है। इसके अतिरिक्त 'अखिल भारतीय संस्कृत परिषद् लखनऊ के प्रति मेरी हार्दिक शुभकामना है, वहाँ से 'जातकम्' को दो पालियाँ प्राप्त हुई। मैं सबसे बड़ी कृतज्ञता 'चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन' के व्यवस्थापक महोदय श्री नवनीतदास गुप्त के प्रति ज्ञापित करता हूँ, जिनके सहयोग से इस ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है।
ज्योतिष के जातक प्रथों में 'शुरुजातकम्' एक लघुकाय जातक है। इसमें ६ अध्याय तथा २१६ श्लोक प्राप्त होते हैं, जो विषयवस्तु की दृष्टि से अत्युत्तम है 'शुरुजातकम्' के मूल के साथ हिन्दी टीका भी अपाय है। इसके अतिरिक्त प्रारम्भ में संस्कृत भाषा में 'सम्पादकीय भूमिका' लिखी गयी है जो ग्रन्थ के अध्येताओं और ज्योतिष के छात्रों को एक नयी दिशा प्रदान कर सकेगी। आशा है कि 'शुरुजातकम्' पाठकों के लिए आकर्षण का विषय होगा और ज्योतिषप्रेमी इससे अवश्य लाभ उठायेंगे। संक्षेप में हिन्दी टीका युक्त 'शुरुजातकम्' विजनों से लेकर विद्यार्थी और सामान्य जन के लिए बोधगम्य तथा हृदयग्राही होगा, ऐसा मेरा मन्तव्य है।