भूमिका
मेरे सामने एक वही कठिनाई है। मैं किसी भी दृष्टि से ज्योतिबिंदु नहीं कहा जा सकता। सिद्धान्त ज्योतिष का तो थोड़ा बहुत ज्ञान है मी परन्तु फलित के सम्बन्ध में जो कुछ जानता हूं वह नहीं के बराबर है। फिर भी चूंकि मैं इस विषय में लिखता पढ़ता रहता हूं इसलिये बहुत से लोगों को यह भ्रम है कि मैं इस विषय में कुछ साधिकार कह सकता हूँ। सम्भवत इस भूमिका को लिखकर मैं इस भ्रम को और भी पुष्ट करने जा रहा हूँ ।
धानकल नई शिक्षा पाये हुए लोगों में फलित ज्योतिष पर विश्वास प्रकट करने का चलन नहीं है। विश्वास रहता है, ज्योतिषियों से परामर्श भी लिया जाता है; परन्तु यह कहा नहीं जाता कि हम ज्योतिष पर विश्वास करते हैं। यह मानसिक दौवंश्य है और इसने इस विषय के अध्ययन में बढ़ो बाधा डाली है। जिस विषय का समर्थन वह समुदाय नहीं करता जो शिक्षित है और जिसके हाथ में अधिकार का सूत्र है, उसका अभ्यास ऐसे लोगों के हाथ में स्वभावत. चला जाता है जिनका एकमात्र उद्देश्य रुपया कमाना होता है। इसके लिए वह यजमान को धोखा देना बुरा नहीं समझते हैं। जब समाज खुलकर उनका चादर . करने को तैयार नहीं है तो वह भी उसके प्रति अपने को दायी नहीं स्वीकार करते। यह दुर्गावस्था दूर होनी चाहिए। इस बात की वैज्ञानिक ढंग से परीक्षा होनी चाहिए, और ऐसी परीक्षा करना कठिन नहीं है, क्योंकि ज्योतिष का संबंध परलोक से नहीं इहलोक से है कि ज्योतिष की वाले कहाँ तक सच हैं। किसी एक आध व्यक्ति के जीवन में किसी ज्योतिषी को बताई हुई बात का घटित हो जाना पर्याप्त प्रमाण नहीं है।
प्रस्तुत पुस्तक, जैसा कि इसका नाम ही प्रकट करता है, फलित ज्योतिष के प्रारम्भिक विद्यार्थी के लिये लिखी गई है। इसको पढ़ लेने के बाद वह सभी पारिभाषिक शब्दों से परिचित हो जायेंगे, जिनको हम ज्योतिषियों के मुँह सुना करते हैं । जम्म पत्री बनाने तथा फलादेश करने का मार्ग भी खुल जायेगा। यही फलित ज्योतिष का रोचक अंश है। यदि तत्परता से इसका अध्ययन किया जाय तो अपने लिये और अपने कुटुम्बियों तथा मित्रो के लिये तो फलादेश किया ही जा सकता है, ज्योतिष के सम्बन्ध में प्रयोग और परीक्षा भी की जा सकती है। सार्वजनिक दृष्टि से इसकी सबसे बड़ी आवश्यकता है। रचयिता का तो यह दावा है कि केवल इस पुस्तक का अध्ययन और मगन कर पाठक अच्छा ज्योतिषी वन सकता है । इस दावे में चाहे कुछ अतिशयोक्ति भी हो परन्तु मुझे ऐसा लगता है कि पढे लिखे आदमियों को जिस प्रकार ज्योतिष का उपयोग करना चाहिये उसके जिये इसमें पर्याप्त सामग्री है।
लखनऊ नवम्बर सन् १९५६
सम्पूर्णानन्द
हर्ष का विषय है कि सम्प्रति ज्योतिषशास्त्र में लोकाभिरुचि की वृद्धि हो रही है। प्राचीन विचार के सज्जन तो सदैव से ज्योतिष मे विश्वास रखते चले आये हैं-उनके विषय में तो कुछ कहना ही नही- किंतु नवीन शिक्षा-दीक्षा से सम्पन्न नवयुवक समुदाय दिनानुदिन ज्योतिषशास्त्र की घोर कष्ट ही नहीं हो रहा हे अपितु ज्योतिष में चन्तु प्रवेश के लिए साग्रह सोन्सुक है, यह और मी प्रसन्नता का विषय है।
२- किंतु ज्योतिष का गम्भीर शास्त्र दुरूह संस्कृत-प्रन्थो में निवद्ध होने के कारण जनसाधारण के लिए अप्राप्य है। धनुवादित ग्रन्थों से विषय-प्रवेश में जैमी सुगमता होनी चाहिए वैसी होती नहीं। इस कारण गोयल एण्ड कम्पनी के अध्यक्ष- मेरे प्रिय मित्र श्री कैलाशचन्द्र जी गोयल के बारंबार अनुरोध करने पर "सुगम ज्योतिष प्रवेशिका" नामक यह अन्य अनेक शास्त्रो का अवलोकन कर और उनका सार सग्रह कर प्रस्तुत किया है। इसके चार भाग हैं
(1) प्रथम भाग -जावक विचार। (२) द्वितीय भाग-1 - वर्षफल विचार । (३) तृतीय भाग- प्रश्न विचार। (४) चतुर्थ माग- -मुहूर्त विचार।
हिन्दी भाषा में कोई ऐमी पुस्तक नहीं थी जिसमें ज्योतिष के इन चारो विषयों का मार्मिक ज्ञान सरल भाषा में समझाया गया हो । यत्र- तत्र प्रामाणिकता के लिए संस्कृत के श्लोक दे दिए गए हैं. जो आभूषणों मे रत्नो की भाँति इस पुस्तक के सौन्दर्य को बढ़ाते हैं। इस ग्रन्थ को अच्छी प्रकार पढ लेने से ज्योतिष का अच्छा ज्ञान पाठको को हो जावेगा, इसकी पूर्व प्राशा ही नहीं अपितु दृढ विश्वास है।