प्रथमोअंक-
रामराज्याभिषेक के अनन्तर जनक के चले जाने पर सीता उदास हो जाती हैं राम उन्हें सांत्वना देते हैं। इधर सीता के मनोविनोदार्थ लक्ष्मण ने राम के अब तक की जीवन की घटनाओं को लेकर एक चित्रपट तैयार करवाया है। सीता राम व लक्ष्मण के साथ उसे देखती हैं एवं चित्र दर्शन से उत्पन्न हुई भगवती भागीरथी में अवगाहन करने की अभिलाषा व्यक्त करती हैं चित्र दर्शन के श्रम से थककर सीता सो जाती हैं। इसी समय दुर्मुख नामक एक गुप्तचर सीता के संबंध में लोकापवाद का समाचार लेकर राम के पास उपस्थित होता है। इस समाचार को सुनकर राम को पीड़ा होती है। एक ओर राज-धर्म का प्रश्न और दूसरी ओर कठोरगर्भा सीता की अवस्था अन्त में वे अपने कर्तव्य पालन का निश्चय करते हैं लोकरंजन के लिए अपनी प्राणप्रिया का परित्याग करने को कृतसंकल्प यह लक्ष्मण को सीता के निर्वासन का आदेश देते हैं भागीरथी दर्शन की इच्छा तो सीता को थी ही इसी इच्छा की पूर्ति के बहाने वह निर्वासित कर दी जाती हैं।
द्वितीयअंक- इसमें आत्रेयी नामक तपस्विनी व वनदेवता ( वासन्ती) के संवाद माध्यम से कई घटनाओं की सूचना दी जाती है। आत्रेयी महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में रहकर अध्ययन करती थीं किंतु वहाँ अध्ययन संबंधी विघ्न उपस्थित होने से दंडकवन में आना पड़ा है। वह महर्षि बाल्मीकि को किसी देव विशेष द्वारा दिए गए दो अद्भुत बालकों की सूचना देती है, जो कुश व लव नाम के हैं एवं अत्यंत कुशाग्र बुद्धि होने से उनके साथ अपने जैसों की साथ-साथ पढ़ने की आयोग्यता बतलाती है। वह सीता के निर्वासन की सूचना भी आत्रेयी को देती है एवं राम के अश्वमेध यज्ञ के आरंभ करने का भी समाचार देती है जिसमें राम स्वर्णमयी सीता की मूर्ति से धर्मचारिणी का काम लेंगे। तत्पश्चात् वह बताती है कि सीता का निर्वासन हो जाने के कारण दुःख संतप्त भगवान वशिष्ठ, माता अरुन्धती और कौशिल्या आदि माताएँ दामाद के यज्ञ से लौटने पर अयोध्या न जाकर वाल्मीकि के आश्रम में पहुँच गई हैं। शम्बूक नामक शूद के दंडकारण्य में तप करने की सूचना यासंती को उसके द्वारा प्राप्त होती है जिससे उसे राम के पुनर्दर्शन की आशा 5
होती है। शंबूक को खोजते हुए राम दंडक वन में प्रवेश कर शंबूक का वध करते हैं। दंडकवन में प्रकृति की शोभा का अवलोकन करते-करते राम सीता की स्मृति से अवसन्न हो जाते हैं। तत्पश्चात् राम पंचवटी में प्रवेश करते हैं।
तृतीयक-तमसा और मुरला सखियों परस्पर संभाषण में बताती है कि सीता जब लक्ष्मण द्वारा वाल्मीकि आश्रम के पास निर्वासित हुई तो वे लक्ष्मण के जाने के बाद शोक विह्वल होकर गंगा में कूद पड़ी वहीं जल में लव कुश का जन्म हुआ गंगा और पृथ्वी सीता को रसातल में संभाल कर ले गई और बालकों को गंगा देवी ने महर्षि वाल्मीकि को सौंप दिया इसके बाद सीता छाया रूप में प्रकट होती हैं। राम पंचवटी में प्रवेश करते हैं पर वे सीता को देख नहीं पाते। उनके हृदय में सीता विषयक विरह वेदना अत्यंत बढ़ी हुई है। अपने पुराने क्रीड़ास्थलों को देखकर राम मूर्च्छित हो जाते हैं तब सीता अपने स्पर्श से उन्हें चेतन करती हैं। यद्यपि राम सीता को देख नहीं पाते पर उन्हें विश्वास हो जाता है कि यह स्पर्श सीता का ही है अन्य का नहीं बातचीत के प्रसंग में वासंती राम को सीता के निर्वासन का उलाहना देती है। राम सीता के शोक में प्रमुक्त कंठ होकर विलाप करते हैं।
चतुर्वअंक-वाल्मीकि आश्रम में दो तपस्वी बालक परस्पर बातचीत करते हुए आते हैं। वहाँ वशिष्ठ और अरूंधती राम की माताओं के साथ पूर्व ही आ चुके थे। इसी समय जनक का आगमन होता है। वे सीता के निर्वासन के कारण अत्यंत दुःखी हैं। अरुपती के साथ कौशल्या उनसे मिलने आती हैं। कौशल्या और जनक परस्पर सांत्वना प्रदान करते हैं। इसी समय अन्य बालकों के साथ लव का प्रवेश होता है। कौशल्या और जनक को उसे देखकर उसे जानने की उत्कंठा जागृत होती है लव आकर उनका अभिवादन करता है। वह अपना परिचय वाल्मीकि के शिष्य के रूप में देता है। विप्र वटु लव को इसी बीच अश्वमेध अश्व के दर्शन करने के लिए बुलाते हैं। लय वहां जाकर अश्वरक्षकों की घोषणा श्रवण करता है। उसे सुनकर लव को क्रोध आता है और वह अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को पकड़ लेता है।
पञ्चमअंक-लब की वाण वर्षा से सैनिक विचलित हो उठते हैं इसी बीच कुमार चंद्रकेतु युद्ध क्षेत्र में प्रवेश करते हैं वे प्रथम दर्शन से ही सारथि सुमंत्र से लब की वीरता और क्रोध एवं ओजपूर्ण मुखश्री की प्रशंसा करते हैं। तदनंतर दोनों का युद्ध प्रारंभ होता है लव जृम्भकास्त्र का प्रयोग करते हैं उसे देखकर सुमंत्र और चंद्रकेतु दोनों को विस्मय होता है। युद्ध विराम के बाद दोनों मिलते हैं तथा अनुराग का उद्भव होता है। बातचीत में ही सुमंत्र रामभद्र की चर्चा करते हैं लव अपने इस कृत्य ( अश्वग्रहण) में रक्षकों की दर्पपूर्ण 'राक्षसीयाणी' को ही