“वक्रेश्वर की भैरवी' जिन योग-तन्त्र-परक कथाओं का संग्रह है, वे निःसन्देह आपको अविश्वसनीय और असम्भव-सी लगेंगी, स्वाभाविक भी है। आज के वैज्ञानिक युग में भला कौन विश्वास करेगा, इन्द्रियों की सीमा से परे घटित घटनाओं पर, लेकिन यह तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि इस भौतिक जगत में दो सत्ताएँ हैं--
आत्मपरक सत्ता और वस्तुपरक सत्ता। वस्तुपरक सत्ता के अन्तर्गत आने वाली वस्तुओं को तो प्रमाणित किया जा सकता है, लेकिन आत्मपरक सत्ता का नहीं। इसलिए कि आत्मपरक सत्ता की सीमा के अन्तर्गत जो कुछ भी है, उनका अनुभव किया जा सकता है, और उनकी अनुभूति की जा सकती है। अनुभव मन का विषय है और अनुभूति है
आत्मा का विषय। दोनों में यही अन्तर है। मन का विषय होने के कारण किसी न किसी प्रकार एक सीमा तक अनुभवों को तो व्यक्त किया जा सकता है लेकिन अनुभूति को व्यक्त करने के लिए कोई साधन नहीं है क्योंकि वह है आत्मा का विषय मन को एकाग्र कर आत्मलीन होने पर इन्द्रियातीत विषयों की अनुभूति होती है।
वेद परम ज्ञान हैं और तंत्र हैं गुह्म ज्ञान, जो अपने आपमें अत्यन्त रहस्यमय गोपनीय और तिमिराच्छनन है।
उसके वास्तविक स्वरूप से परिचित होने के लिए जहाँ एक ओर मैंने योग तंत्र पर शोध एवं अन्वेषण कार्य शुरू किया, वहीं इसकी ओर प्रच्छनन, अप्रच्छन्त रूप में संचरण-विचरण करके सिद्ध योगी साधकों और अति गोपनीय ढंग से निवास करने वाले संत-महात्माओं की खोज में हिमालय और तिब्बत की जीवन-मरण-दायिनी हिम-यात्रा भी की।
पूरे तीन साल रहा मैं तिब्बत के रहस्यमय वातावरण में कहने की आवश्यकता नहीं। अपने इसी खोज अन्वेषण और अपनी यात्रा के सिलसिले में मेरे जीवन में जो भी अलौकिक और अभौतिक घटनाएँ घटीं और चमत्कार पूर्ण अविश्वसनीय अनुभव हुए उन्हें बराबर लिपिबद्ध कर अपनी प्रांजल भाषा में कथा रूप देता रहा। उन्हीं कथाओं में कुछ का संग्रह 'वक्रेश्वर की भैरवी' है, जो आपके सम्मुख है।
मुझे पूर्ण आशा है, और विश्वास भी है कि अन्य कथा-संग्रह की तरह यह कथा संग्रह भी रोचक और ऊर्जा देय सिद्ध होगा।
आगम निगम संस्थान
अरुणकुमार शर्मा , बी० ५/२३, अवध गर्वी , हरिश्चन्द्र रोड, वाराणसी-१